गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

अवध एक्सप्रेस का लेडीज़ कम्पार्टमेंट

तत्काल सफ़र करना कितना मुश्किल काम है ये एक भुक्तभोगी  ही समझ सकता है। मैंने अभी ऐसी ही कई यात्रायें की  है। अवध एक्सप्रेस के लेडीज़ कम्पार्टमेंट में ---जहाँ कि औरतें कम और सामान ज्यादा रहता है। गाडी के सबसे पीछे वाली बोगी -सुरक्षा कि कोई व्यवस्था नहीं -किसी को खड़े होने कि जगह नहीं मिलती तो कोई रास्ते में ही लेटी या बैठी रहती है। एक औरत के साथ चार सामान --कोई देखनेवाला नहीं ,मुम्बई जानेवाली और मुम्बई से आनेवाली निम्न वर्ग की  महिलाओं से भरा रहता है कम्पार्टमेंट। शामगढ़ से लखनऊ तक एक बार भी कोई गार्ड नहीं आया। सभी औरतें इतनी बुरी तरह से लड़ती हैं कि उसका वर्णन करना भी मुश्किल है। भगवान की  दया से मुझे सीट मिल जाती है  पर जो डरपोक किस्म कि औरतें होती है उसे रास्ता भी नहीं मिल पाता। कितना कठिन  है ऐसी यात्रा को अंजाम देना और इसका जिम्मेदार कौन है ?  कई सवाल ऐसे हैं जिनका कोई जवाब नहीं है। पर मैं ऐसे सफ़र का भी भरपूर आनंद लेती हूँ। क्योंकि सफ़र तो सफ़र है चाहे वो दूरियों का सफ़र हो या जिंदगी का----- उसे कैसे जीना है ये अपने हाथ में है। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो रोज़ का किस्सा है यहाँ ,सफर दर सफर हैं यहाँ .

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  2. जिंदगी भी इसी तरह के एक रेल के डिब्बे जैसी नहीं लगती है क्या? :)

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  3. कुछ मत पूछिए , हालाते बेबसी है , सुन्दर छायांकन

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  4. आप सबको नववर्ष 2014 की मंगल कामनाएं...

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  5. उफ़!
    इससे अच्छा नज़ारा शायद विश्व में और कहीं देखने को नहीं मिल सकता है ...

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