गुरुवार, 28 मार्च 2013

धुँध के उस पार

मतलब जीवन का  नहीं है ...
रिश्तों का व्यापार

क्या इसी को जीवन  कहते हैं ?
जानने के लिए चलिए
धुँध के उस पार .......
 

ब्लागर साथियों इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपकोजीवन के बहुरंगी अनुभवों  से दो-चार करवाउंगी , आपके सहयोग की अपेक्षा है .....धन्यवाद ....

वो लड़की


कक्षा चतुर्थ में पढनेवाली छोटी सी लड़की नेहा  विद्यालय आती ..
पूर्ण समर्पण के साथ अपना पाठ याद करती .शिक्षक जो भी पढ़ाते
 उसे ध्यानपूर्वक सुनती और जैसे हीं समय मिलता ....
.पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की की दिनचर्या को गौर से देखती .
वास्तव में उस लड़की में गजब की फूर्ति थी
.सामान्यत:माएँ काम  करते हुए नजर आती थी पर यहाँ उसे अलग नज़ारा देखने को मिलता था .
माँ तो हमेशा सज-धज कर बैठी रहती ,बेटी काम करती रहती थी .
 चार छोटे भाइयों को नहलाना धुलाना ,बरतन माँजना .
 खाना बनाना .माँ की चोटी बनाना ,सबके कपडे धोना,
इतना सारा काम करते उसने किसी बीस वर्षीय
 लड़की को पहली बार देखा था .
 इसके बाबजूद उसका बड़ा भाई उसे डाँटते रहता कि
'अभी तक तुमने खाना नहीं बनाया "?
भाई के हाँ में हाँ मिलाते हुए उसके पापा
भी उसे डाँटते  पर वो निर्लिप्त भाव से
  मशीनवत सारा काम करती  रहती थी .
  पापा ,मम्मी .बड़े भाई और सभी छोटे
भाइयों को खाना खिलाने के बाद
 वो लड़की एक बार फिर घर एवम बर्तन साफ  करती,...
 वाकई में  उसके बर्तन एवम  घर शीशे सा चमकता रहता था .

.अंत में वो नहाती और फिर अकेली   खाना
खाती .नेहा ने   दुकड़ों-दुकड़ों में ये देखा था .
उसे बड़ा अजीब लगता था क्योंकि इसके पहले उसने ऐसा कहीं
देखा नहीं था .
उसकी माँ बड़े मनुहार से उसे खाना खिलाती थी पर यहाँ तो स्थिति
बिल्कुल उल्टी  थी .खैर एक बार उसे मौका मिल हीं गया .छुट्टी हुई और
वो लड़की उसे रास्ते में मिल गई .
 बिना किसी भूमिका के नेहा  पूछ बैठी ,"दीदी ..
आप इतना काम इतनी सफाई से कैसे कर लेती हैं ?
आपकी माँ कोई काम क्यों नहीं करतीं ?
आपका भाई बिना वजह आपको क्यों डांटता है ?
चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट लाते हुए वो लड़की बोली ,"मेरी माँ
अंधी है इसलिए कोई काम नहीं करती वस्तुत:वो तन से हीं
नहीं मन से भी अंधी है,. इसीलिए जिस उम्र में उसे
दादी या नानी बनना चाहिए  माँ बन रही है ...
अपनी  गिरहस्ती का सारा भार मेरे ऊपर डाल दिया है ..
भाई भी क्या करेगा माँ-बाप का गुस्सा मेरे ऊपर निकालता है .
बेटी और बहन  होने के नाते मेरा जो फर्ज है उसे निभा रही हूँ" .
और कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई नेहा की ..उसे पहली बार पता चला था
कि" माँ-बाप  ऐसे  भी होते हैं " .उसे तो लगता था की माँ -बाप वो होते हैं जो अपनी
संतान से बेहद प्यार करते हैं,..... पर .ये कैसे माँ-बाप हैं ?.....जिन्हें
अपनी ख़ुशी के पीछे अपनीं संतान का दू ;ख नज़र नहीं आ रहा है .....
छोटी सी वो नेहा अब  बहुत बड़ी हो गई है पर ....आज भी उसके सामने
ऐसे कई सवाल मुँह बाए खड़े हैं  जिसका कोई जबाव नहीं है .....शायद यही जीवन है .....






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