शनिवार, 17 जून 2017

शायद






यादों और दोस्ती का बड़ा गहरा रिश्ताहै क्योंकि दोस्ती जहाँ समय के साथ गहराती है वहीँ वो धुँधली भी हो जाती है ऐसी ही एक दोस्ती को पुनर्जीवित  किया है  मेरी बचपन की दोस्त - ज्योत्सना ने --जो पाकुड़िया में मेरे साथ पढ़ती थी. संभवतः हम कक्षा ६ तक साथ पढ़े थे उसके बाद पिताजी के ट्रांसफर की वजह से हमारा साथ छूट गया था १९८० में यानि  करीब ३७ साल का फासला-- यादों के झरोखों को ताज़ा करने मैं पाकुड़िया गई थी जिसकी जानकारी ज्योत्स्ना को हुई। पाकुड़िया में रहनेवाली  दोस्त मीरा से मेरा मोबाइल  नम्बर लेकर उसने मुझसे बात की पर --- मेरी यादें धुंधला गई थी उसे पहचान न पाई ---सॉरी ज्योत्सना तुमने मुझे इतने दिनों से अपने दिल में बसा रखा था पर मैं भूल गई थी किन्तु मीरा से बात करने पर मुझे तुम बहुत अच्छे से याद आ गई और शायद ये तुम्हारी चाहत ही थी कि मेरा नैनीताल जाने का प्लान बना.सच...... बहुत अच्छा लगता है जब हम बचपन के निश्छल और स्नेह से लबरेज़ दोस्तों से मिलते हैं... ऐसा लगता है --- जिंदगी नहा धोकर धवल कपडे में सजकर मुस्कुरा रही हो जैसे । जहाँ २६-२०१७  मई को हमने जंगल की रोमांचक यात्रा की वहीँ मुझे अपनी प्यारी सी दोस्त , उसके प्यारे से बेटे भास्कर औ रउसके  स्नेहशीलपति से मिलकर कितनी ख़ुशी हुई उसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। वस्तुतः मेरी बिटिया , बेटा और पतिदेव भी ख़ुशी से गदगद थे. एक बार पुनः मुझे ये सुनने को मिला कि.... मम्मी आपकी किस्मत बड़ी अच्छी है... क्योकि आपके पास बहुत अच्छी  अच्छी दोस्त हैं। बिटिया के ये शब्द मुझे बहुत ख़ुशी प्रदान करती है। वैसे तो दिल्ली कई बार गई पर इस बार इस के पड़ोस में बसे  हरियाणा के बहादुरगढ  की सूर्या फैक्टरी  के क्वार्टर  ने मेरे मनमतिष्क पर बड़ी मधुर  छाप छोड़ी क्योंकि वहाँ मेरी प्यारी सी दोस्त रहती है जिसके दिल में मेरे लिए प्यार का अथाह सागर लहराता है। अपने दिल की बात बताते हुए उसने मुझे बताया था कि... निशा मैं.तुम्हें .बहुत याद करती थी और सोचती थी कि पता नहीं इस जन्म में तुमसे मुलाकात होगी या  नहीं---इतना प्यार और मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ज्योत्स्ना ---तुम जैसे दोस्तों की दुआओं से ही शायद मुझे मौत ने जिंदगी जीने का एक और मौका प्रदान किया है।