tag:blogger.com,1999:blog-90693810667720900762024-03-18T21:27:24.061-07:00धुँध के उस पार Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-7614382552960506232020-01-02T00:47:00.000-08:002020-01-02T00:50:51.792-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
बहुत याद आती हो रजनी</div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
2002 -2003 का सत्र था जब मैंने शिक्षा -संस्थान (SOE भँवर कुआँ) से M.Ed.किया था। वहीं मिली थी रजनी। दुबली-पतली प्यारी सी बैचमैट के रूप में। मेरे लिए उस तपते रेगिस्तान में हरियाली सी थी रजनी।</div>
<div style="text-align: left;">
जहाँ कक्षा के अन्य स्थानीय सहपाठी अपने आप को खास समझते थे वहीं रजनी स्थानीय होने के बावजूद बड़े प्यार से बात करती थी। उम्र में छोटी होने की वजह से वो मुझे दीदी कहा करती थी। मुझे सचमुच में वो अपनी छोटी बहन सी लगती थी। कभी-कभार शाम को रजनी अपने घर ले जाती थी। वहीं से उसके साथ दूसरे दिन हम</div>
<div style="text-align: left;">
डिपार्टमेन्ट आ जाया करते थे।कभी मैंने ये जानने की कोशिश नहीं कि , की रजनी का घर किस जगह है।जहाँ वो ले जाती वहीं चली जाती।हाँ उसके मुँह से परदेशीपूरा का नाम अवश्य सुनती थी।वस्तुतः वो क्रिश्चन कॉलोनी</div>
<div style="text-align: left;">
में रहती थी।पढ़ाई पूरा होते हीं हम जुदा हो गए।उसके बाद हम कभी नहीं मिले।पता नहीं क्या हुआ,उसको।किसी से पता चला कि उसको कोई गंभीर बीमारी हो गई थी । आज भी मुझे रजनी की बड़ी याद आती है।पता नहीं वो कहाँ है।जिन रस्तों से उसके साथ गुजरती थी ,उन रस्तों से आज जब-जब गुजरती हूँ,उसकी याद आती है। सच में--- कुछ लोग नज़र से दूर हो या दूरियों एवं समय से परे हों किन्तु फिर भी याद आते हैं॥ शायद यही जिंदगी है।</div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-83023089895167975642017-06-17T04:52:00.001-07:002017-06-17T23:36:44.399-07:00शायद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4QJPkx8nNqNiubzGaopc5T9qkIE63GFFjVN_IFR60WAj5sSl9Ey626L39m9kGZGerCpUg4sWRgm1Z6yaueoyDXFwNmg78N67idUA6B5YaskqqfnWmK58_a7psdX2_SfKcszv-cFijVTc/s1600/IMG-20170612-WA0001+%25282%2529.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1040" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4QJPkx8nNqNiubzGaopc5T9qkIE63GFFjVN_IFR60WAj5sSl9Ey626L39m9kGZGerCpUg4sWRgm1Z6yaueoyDXFwNmg78N67idUA6B5YaskqqfnWmK58_a7psdX2_SfKcszv-cFijVTc/s320/IMG-20170612-WA0001+%25282%2529.jpg" width="320" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvc6LHQPn_TTseFjZakfxBfjqzyBpOyLXAkTBP_GUbD-OxPwpF0GN1Zv2ShUBvM2NMFuVBOIF4ShlPOp3JMkTU6tREHrhJEAfKw2zw28Cfe1lIS6UsBF6ZrmpSc6D9G2boYV4cbPCj-Yo/s1600/IMAG0487.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="958" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvc6LHQPn_TTseFjZakfxBfjqzyBpOyLXAkTBP_GUbD-OxPwpF0GN1Zv2ShUBvM2NMFuVBOIF4ShlPOp3JMkTU6tREHrhJEAfKw2zw28Cfe1lIS6UsBF6ZrmpSc6D9G2boYV4cbPCj-Yo/s200/IMAG0487.jpg" width="118" /></a></div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQ06-aQ4u6zv9ndKREDIOjB56WShyC9B1GrsL8mMI3YFtXMFX4pzdIeCvrmwfg9iX8P2hr6z6_9tPt1R-RR7ttHK_nHaWiGLABZNAIwoTqeFUn65f7dublcJ6Rr37zTwkilQG9Mj5_FBE/s1600/IMAG0495.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1225" data-original-width="1600" height="152" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQ06-aQ4u6zv9ndKREDIOjB56WShyC9B1GrsL8mMI3YFtXMFX4pzdIeCvrmwfg9iX8P2hr6z6_9tPt1R-RR7ttHK_nHaWiGLABZNAIwoTqeFUn65f7dublcJ6Rr37zTwkilQG9Mj5_FBE/s200/IMAG0495.jpg" width="200" /></a><br />
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<span style="color: #cc0000;">यादों और दोस्ती का बड़ा गहरा रिश्ताहै क्योंकि दोस्ती जहाँ समय के साथ गहराती है वहीँ वो धुँधली भी हो </span><span style="color: #cc0000;">जाती है ऐसी ही एक दोस्ती को पुनर्जीवित किया है मेरी बचपन की दोस्त - ज्योत्सना ने --जो पाकुड़िया में मेरे साथ पढ़ती थी. संभवतः हम कक्षा ६ तक साथ पढ़े थे उसके बाद पिताजी के ट्रांसफर की वजह से हमारा साथ छूट गया था १९८० में यानि करीब ३७ साल का फासला-- यादों के झरोखों को ताज़ा करने मैं पाकुड़िया गई थी जिसकी जानकारी ज्योत्स्ना को हुई। पाकुड़िया में रहनेवाली दोस्त मीरा से मेरा मोबाइल नम्बर लेकर उसने मुझसे बात की पर --- मेरी यादें धुंधला गई थी उसे पहचान न पाई ---सॉरी ज्योत्सना तुमने मुझे इतने दिनों से अपने दिल में बसा रखा था पर मैं भूल गई थी किन्तु मीरा से बात करने पर मुझे तुम बहुत अच्छे से याद आ गई और शायद ये तुम्हारी चाहत ही थी कि मेरा नैनीताल जाने का प्लान बना.सच...... बहुत अच्छा लगता है जब हम बचपन के निश्छल और स्नेह से लबरेज़ दोस्तों से मिलते हैं... ऐसा लगता है --- जिंदगी नहा धोकर धवल कपडे में सजकर मुस्कुरा रही हो जैसे । जहाँ २६-२०१७ मई को हमने जंगल की रोमांचक यात्रा की वहीँ मुझे अपनी प्यारी सी दोस्त , उसके प्यारे से बेटे भास्कर औ रउसके स्नेहशीलपति से मिलकर कितनी ख़ुशी हुई उसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। वस्तुतः मेरी बिटिया , बेटा और पतिदेव भी ख़ुशी से गदगद थे. एक बार पुनः मुझे ये सुनने को मिला कि.... मम्मी आपकी किस्मत बड़ी अच्छी है... क्योकि आपके पास बहुत अच्छी अच्छी दोस्त हैं। बिटिया के ये शब्द मुझे बहुत ख़ुशी प्रदान करती है। वैसे तो दिल्ली कई बार गई पर इस बार इस के पड़ोस में बसे हरियाणा के बहादुरगढ की सूर्या फैक्टरी के क्वार्टर ने मेरे मनमतिष्क पर बड़ी मधुर छाप छोड़ी क्योंकि वहाँ मेरी प्यारी सी दोस्त रहती है जिसके दिल में मेरे लिए प्यार का अथाह सागर लहराता है। अपने दिल की बात बताते हुए उसने मुझे बताया था कि... निशा मैं.तुम्हें .बहुत याद करती थी और सोचती थी कि पता नहीं इस जन्म में तुमसे मुलाकात होगी या नहीं---इतना प्यार और मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ज्योत्स्ना ---तुम जैसे दोस्तों की दुआओं से ही शायद मुझे मौत ने जिंदगी जीने का एक और मौका प्रदान किया है। </span></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-13251507008460019602016-07-22T07:01:00.003-07:002016-07-22T07:10:52.180-07:00वो औरत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuB62HqQXXasCy2flOf_s5c3P-ioMuFnWN4v7X8b3iog3dbXxAIgJ5WHjPQu7oAwQ3jMJXRKDnyNQbC4mbvHsb3z0hJ1mQxqg1iA1g7hMIs1Q174R_qBD3FEPhpdIZrTCNWUYg1eA22mw/s1600/aurat.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuB62HqQXXasCy2flOf_s5c3P-ioMuFnWN4v7X8b3iog3dbXxAIgJ5WHjPQu7oAwQ3jMJXRKDnyNQbC4mbvHsb3z0hJ1mQxqg1iA1g7hMIs1Q174R_qBD3FEPhpdIZrTCNWUYg1eA22mw/s1600/aurat.jpg" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: medium;"><span style="color: blue; font-size: small;"><b> उसकी दूसरी शादी थी। पहले पति से किसी कारणव</b></span><b style="color: blue;">श तलाक हो गया </b><span style="color: blue; font-size: small;"><b>था। पढ़ी लिखी समझदार महिला थी। दूसरे पति की पत्नी का देहांत हो गया था किसी बीमारी की वजह से, उनके दो बेटे हैं -शादी के वक्त एक बेटा</b></span><span style="color: blue; font-size: small;"><b>बारहवीं एवम दूसरा नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। एक नयी जिंदगी की शुरुआत बड़े ही उत्साह से किया उसने। घर का काम ,नौकरी ,सभी की आवश्यकता की पूर्ति उसकी प्राथमिकता थी। अपने पैसे से अपने बेटों को मनचाहा उपहार देती थी ,अपने लिए कुछ नहीं जोड़ा। शुरू में बड़े बेटे ने उसे दिल से स्वीकार नहीं किया था किन्तु बाद में सभी कुछ सामान्य हो गया था। समय को बीतने में समय नहीं लगता। बड़े बेटे की शादी की। सौत की कभी अपने ससुराल वालों से नहीं पटी थी सो वो अलग रहती थी ,अपने पति और बच्चों के साथ लेकिन इसने अपने ससुराल वालों को पुनः जोड़ा। कुल मिलाकर वो एक सुखी जीवन जीने का सपना साकार करना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। बहू के आ जाने के बाद वो सबकी नज़रों को चुभने लगी क्यों ? सबके अपने अपने कारण थे। बहू ने बताया </b></span><b style="color: blue;">रोटी फूर्ति से नहीं बना पाती हूँ तो मुझे परेशां करती है। बेटे ने बताया की सुबह थोड़ी देर हो जाती है उठने में तो --ये औरत दरवाजा खटखटातीहै ।खाने के लिए बैठते हैं हम तो पूछती है कितनी रोटी खाओगे। पति का कहना था बेवजह झगड़ती है। छोटे बेटे का उससे ज्यादा लगाव था वो अगर सौतेली माँ का पक्ष लेता था तो ऐसा कहा गया कि उसका --उस औरत से गलत सम्बन्ध है। इन सभी कारणों की वजह से आखिरकार सभी घर वालों ने निर्णय लिया की --पापा इस औरत को तलाक दे दे। रो रही थी तो सिर्फ और सिर्फ वो औरत जिसने शायद दिल से सभी से रिश्ता जोड़ा था किसी और ने नहीं जो रिश्ता तोड़ने के लिए लचर दलील का सहारा ले रहे थे। बड़े बेटे और बहू किसी भी शर्त पर उसे अपने घर में जगह देने को तैयार नहीं थे। छोटा गुमसुम था। </b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: medium;"><b> उस औरत ने बताया कि मेरे पति को मेरे चरित्र पर शंका है --उन्हें लगता है कि --मेरा उनके किसी दोस्त से अवैध सम्बन्ध है। पति से पूछने पर बड़े बेटे ने जबाव दिया कि -ये औरत मेरे पापा के दोस्तों को पैग बनाकर देती है ,सभी के साथ हँसती बोलती है। कुल मिलाकर ये बात सामने आई कि -वे लोग ऐन -केन प्रकारेण उससे छुटकारा पाना चाहते थे. बड़े बेटे के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उसके पापा ऐसे लोगों को घर ही क्यों बुलाते थे जिनके चालचलन का कोई भरोसा नहीं था। जितने दिन आवश्यकता थी , उस औरत की उन लोगों ने उसकी सहायता ले ली। बहू के आने के बाद वो सभी के नज़रों की किरकिरी बन गई। उससे छुटकारा पाने के लिए --बहू -बेटे प्लानिंग कर उसे गुस्सा दिलाते रहे और वो औरत उस के साजिश की शिकार होती रही। एक दिन गुस्से से ससुराल से मायके आ गई। बड़े बेटे और बहू को मौका मिल गया। दुबारा उसे अपने घर में घुसने नहीं दिया। वो औरत रोती रही कि मुझे दुबारा अपना घर नहीं तोडना है --पर कौन सा घर ? किसका घर ? छोटे बेटे का एक बार को दिल पसीजा भी लेकिन अन्य लोगों पर कोई </b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: medium;"><b>प्रभाव नहीं पड़ा। उस औरत के जिंदगी में घटनेवाली इस घटना की जानकारी जब उसके किसी परिचित और उम्रदराज महिला ने सुनी तो उसने अफसोस जताते हुए सिर्फ इतना ही कहा --उसके पति के मित्र मण्डली को देखते ही मैं समझ गई थी कि --इसने गलत निर्णय ले लिया है। इसके पास अच्छे अच्छे विधुर के तरफ से रिश्ते आये थे जिसके बच्चे बहुत छोटे थे जो न सिर्फ उसे माँ का दर्जा देते बल्कि पति भी अहसानमंद होते ---लेकिन उसने किसी की बात नहीं मानी। काश--- की </b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: medium;"><b>वो समय रहते ही ---समय और सम्बन्ध दोनों के नब्ज को पहचान लेती --तो दुःख के इस भंवर में न डूबती --पर कोई क्या कर सकता है। ..हम सोचते क्या हैं और हो क्या जाता है ---शायद यही जिंदगी है। </b></span><br />
<b><span style="font-size: medium;"><span style="color: blue; font-size: small;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: small;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: small;"></span></span></b><br />
<span style="color: blue; font-size: medium;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-23646555475388005042016-06-09T08:51:00.001-07:002016-06-15T10:50:42.186-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
-<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwPltBnQ459S_eh-AS2AzIz72a_SoowVPNJNQ7BhEcpSlB4_LZ0YUPQbA7s0231Bkiq0N9sNPZHs2ouFMwAovbW2g1SU1cfK4NBXqWEJKlkpK6KZ83k9Md30Wa2GUHzbim-DXeA3n7r40/s1600/ph.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwPltBnQ459S_eh-AS2AzIz72a_SoowVPNJNQ7BhEcpSlB4_LZ0YUPQbA7s0231Bkiq0N9sNPZHs2ouFMwAovbW2g1SU1cfK4NBXqWEJKlkpK6KZ83k9Md30Wa2GUHzbim-DXeA3n7r40/s1600/ph.jpg" /></a><span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> गला खुश्क पर ---</span><br />
<span style="font-size: large;">भागलपुर का रेलवे स्टेशन ---आज भी वैसा ही है जैसा मेरे बचपन की </span><span style="font-size: large;">यादों में बसा हुआ है। वही भीड़ ,वही दृश्य-- आसपास की दुकानें --कोई बदलाव नहीं-- कोई ठहराव नहीं। बस भागे जा रहे हैं लोग और भागी जा रही है जिंदगी। ठहरा हुआ है तो मात्र वो वक्त --</span><span style="font-size: large;"> जो </span><span style="font-size: large;"> मेरे उस जगह पहुँचते ही मुझे स्नेहसिक्त आँचल में समेट लेता</span><span style="font-size: large;"> है शायद यही वजह है की मैं कुछ सुस्त सी हो जाती हूँयहाँ आकर । अन्यथा किसी भी रेलवे स्टेशन पर मैं बुक स्टाल पर जरूर जाती हूँ पर यहाँ कई यादें मेरे सामने खड़ी हो जाती है जिनमें से कुछ यादें माँ के साथ होती है तो कुछ पिताजी के साथ। सच बड़े ही प्यारे दिन थे वे-- जब पूरी दुनिया अपनी मुट्ठी में समाई रहती थी --नानी के घर जाती थी तब भग्गू सिंह के जहाज ( बोट ) से गंगा नदी पार् करती थी। जो की दो मंजिला हुआ करता था मेरे ख्याल से मै , मेरी छोटी बहन और छोटा भाई जरूर रहता होगा माँ के साथ --आधे घंटे में हम उस पार से इस पार यानि बरारी जरूर आ जाते होंगे जब हम जहाज पर चढ़ते थे तो मैं माँ से हमेशा जहाज के दूसरी मंज़िल पर जाने के लिए कहती थी और माँ मान जाती थी.</span><span style="font-size: large;"> कभी मना नहीं करती थी जबकि अधिकतर लोग नीचे ही रहते थे क्योंकि किनारा तुरंत ही आ जाता था। वैसे भी गर्मियों में गंगा नदी की चौड़ाई कम हो जाती थी। अब जब दुनिया की समझ थोड़ी सी हुई है तो लगता है माँ कितनी अच्छी थी मेरी-- बिना किसी डांट डपट के हमें ऊपर बैठा लेती थी जबकि हमारे साथ सामान भी हुआ करता था और कई बार माँ के साथ पिताजी नहीं होते थे। मैं ऊपर जहाँ बैठने के लिए कुर्सियां बनी रहती थी उसपर बैठकर बहुत खुश होती थी और मन ही मन गंगा नदी की धार को देखकर सोचती थी कि अगर किसी वजह से जहाज डूब भी जाए तो हम तो बच ही जायेंगे और यही वजह थी की मै हमेशा ऊपर ही बैठती थी.आज जब उन बातों को याद करती हूँ तो लगता है क़ि माँ कितनी अच्छी थी-- मेरी ख़ुशी की खातिर उन्हें हमेशा सामान को ऊपर ले जाना पड़ता था और लाना पड़ता था लेकिन फिर भी --- ???? बचपन से ही नानी के घर जाने की वजह से इतनी बार गंगा नदी पार किया कि अथाह जल से डर नहीं बल्कि दोस्ती हो गई है। पिताजी के साथ भी पाकुड़िया ( झारखण्ड) जाने के लिए भागलपुर आना पड़ता था जहाँ रात की गाडी पकड़नी होती थी --साथ में छोटा भाई भी रहता था --पलकें नींद </span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">से बोझिल रहती थी। पिताजी बड़े प्यार से बोलते थे -- आँखें खोलो बेटा ---गाड़ी आनेवाली है पर आँखें खुलती नहीं थी बहुत अफसोस होता था पर नींद आंखों में सवार हो जाती थी --ऐसी कई यादें बिन बुलाये आ जाती है --वो जगह अभी भी याद है --सब कुछ वैसा ही है पर ---</span><br />
<span style="font-size: large;">इन्ही यादों में खोयी वेटिंग रूम में बैठी थी ११ मई को ट्रैन की प्रतीक्षा में कि अचानक पतिदेव ने नारियल का टुकड़ा बढ़ाया मेरी ओर --जिसे देखते ही मुझे एक झटका सा लगा। नारियल मुझे बेहद पसंद है और बचपन में स्टेशन या बस स्टैंड पर आते ही आँखें नारियल के इस तिकोने टुकड़े को तलाशने लगती थी ---साथ में माँ हो या पिताजी हमें नारियल जरूर मिल जाता था जिसे खाते- खाते मैं बहुत सारे सपने बुन लेती थी।एकदम छोटे - छोटे टुकड़ों में खाती थी ताकि बहुत देर तक खाती रहूं। नारियल खाना और खिड़की से बाहर देखना --ऐसी कई आदतें थीं जिससे मेरी दुनिया --मेरी मुट्ठी में कैद रहती थी --किसी </span><span style="font-size: large;">से कोई मतलब नहीं। जो चाहिए वो पल में हाजिरहो जाता था। कोई बड़े सपने नहीं थे मेरे। आज भी नहीं हैं। जो मिलता है उसमे खुश रहती हूँ। बहरहाल पतिदेव की तहेदिल से शुक्रगुजार हुई नारियल देखकर पर दिल को जो अचानक धक्का लगा उससे आँखों </span><span style="font-size: large;">पर तो असर पड़ना ही था। यादों से पीछा छुड़ाने के लिए कुछ करती इससे पहले ही </span><span style="font-size: large;">पतिदेव ने कहा --पास में ही बुक स्टाल है जाकर कुछ किताबें खरीद लो --इससे जहाँ मेरे सुस्त पड़े </span><span style="font-size: large;">कदमो की चाल </span><span style="font-size: large;"> तेज हुई वहीँ मैं अतीत के गलियारे से भी मुक्त हो गई। मनपसंद किताबों को खरीदने के बाद दिल बड़ा हल्का हो गया --तभी ट्रैन भी आ </span><br />
<span style="font-size: large;">गई। लेकिन ---नारियल खाते खाते गला खुश्क पर आँखों की कोर गीली हो गई --सोचा अब क्या करूँ ---कैसे छुपाऊं ---अपनी गीली पलकों को , सोच ही रही थी की अचानक --एक सुखद संयोग से सामना हो गया -- मेरे </span><br />
<span style="font-size: large;">सीट पर मेरी ही ससुराल के-- जो की रिश्ते में मेरे जेठ लगते हैं उनका बेटा सपरिवार </span><span style="font-size: large;">बैठा हुआ था मिल गया --जिन आँखों में आंसुओं ने अपना डेरा जमाना चाहा --वहां अब ख़ुशी का बसेरा था। सच में ----पल पल में रूप बदलने में माहिर है ये जिंदगी ---इसमें जीतते वही हैं ---जिसने इसके प्रत्येक पल को दिल से अपनाया है। </span><span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"> ब्लॉगर साथियों---बहुत दिनीं के बाद आज वापसी कर रही हूँ --कोशिश रहेगी की आपके ब्लॉग पर भी आऊं अगर नेट साथ देगा तो---</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-79711062330969391472015-07-23T12:11:00.000-07:002015-07-23T19:39:36.393-07:00 पैंतीस साल बाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b>१ मई २०१५ को..... लगभग .... पैंतीस साल बाद बचपन की उन गलियों और सहेलियों से मिलने गई थी जिनके साथ बड़े सुखमय पल बिताये थे मैंने झारखण्ड के पाकुडिया में । जहाँ बचपन की यादों को याद कर खुश हो रही थी वहीँ एक अंजाना सा भय भी था कि पता नहीं कोई मिलेगी या नहीं , कोई मुझे पहचानेगा या नहीं पर बड़ी सुखद अनुभूति हुई जब सहेली मीरा का घर पूछने पर एक लड़का हमें ख़ुशी ख़ुशी उसके घर ले गया ,,,वहाँ मीरा की माँ जो काफी वृद्ध हो चली थीं मिलीं। मैंने उनसे पूछा--- आंटी मुझे पहचाना आपने-- हाँ तुम डिप्टी साहब की बेटी निशा हो --बिना समय गंवाए उन्होंने जवाब दिया। एक पल को मैं अवाक रह गई क्योंकि बचपन की निशा और आज की निशा में काफी अंतर आ चुका है और सबसे बड़ी बात ये थी की इस बीच हमारा कोई संपर्क भी नहीं था।</b></span><br />
<b><span style="font-size: large;"><br /></span>
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</b><br />
<b><span style="font-size: large;"><br /></span>
</b><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbphhR1V-nfkzKQltlJge65TSyH9UFimesezyg6ucaStRPPpp4A3SH2cj8gwnX02qugBElHwtaAkxW1BM60sjK9DTj5VqGMIZc5-_m0VAGy3UpypKbDNWlX-9PEmU1D35QxC-kZBYAWj0/s1600/2015-06-15+13.25.48+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><b><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbphhR1V-nfkzKQltlJge65TSyH9UFimesezyg6ucaStRPPpp4A3SH2cj8gwnX02qugBElHwtaAkxW1BM60sjK9DTj5VqGMIZc5-_m0VAGy3UpypKbDNWlX-9PEmU1D35QxC-kZBYAWj0/s1600/2015-06-15+13.25.48+%25281%2529.jpg" /></b></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifUVJ393QpdHqRNiA5E8FpC9awxPNv5tXbQOX6KqaLFhBAVJbk4nNwmOMLLNP_Erq2z-o1bbvES8bwE-bWsa5BuJfCl-rErGO9KLiK42PWezRN5ErQz6FpazfOK70hGKv2XNslN3lRl3Y/s1600/2015-06-15+18.21.14.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><b><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifUVJ393QpdHqRNiA5E8FpC9awxPNv5tXbQOX6KqaLFhBAVJbk4nNwmOMLLNP_Erq2z-o1bbvES8bwE-bWsa5BuJfCl-rErGO9KLiK42PWezRN5ErQz6FpazfOK70hGKv2XNslN3lRl3Y/s320/2015-06-15+18.21.14.jpg" width="210" /></b></a></div>
<b><span style="font-size: large;">(जगह वही है उम्र अलग है ---इतनी बारिश थी कि अँधेरा सा छा गया था, उसी समय का ये फोटो है ) </span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> चूँकि मीरा का घर मेरे विद्यालय के पास था अतः जब भी मौका मिलता था मैं उसके घर चली जाती थी। मीरा अपने माता पिता की इकलौती संतान है ,इकलौती बिटिया की सहेली पर ममत्व उड़ेलने में उन्होंने कभी कोताही नहीं बरती थी। ये बात उन्होंने त्वरित गति से पहचान कर साबित कर दिया। उनकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी --मेरे पतिदेव के साथ साथ मेरी दो बहनें उसके बच्चे एवं पति भी साथ में थे और हमें उसी दिन वापस भी होना था। बहुत कम समय था मेरे पास --शाम के तीन बजे पहुंची मात्र दो घंटे में बहुत लोगों से मिलना था। मीरा के घर के पास ही मेरी बाई का भी घर था। बाई बहुत पहले गुजर गई थी पर उसकी बिटिया मिल गई -- उससे भी मैंने यही पूछा कि --मुझे पहचाना ? हाँ --आप निशा दीदी हैं। कितनी ख़ुशी हुई इसका वर्णन करना कठिन है। मैं डरते डरते पाकुडिया गई थी की उस जाने पहचाने जगह में अगर अनजान बन जाउंगी तो शायद बचपन का अनमोल खजाना खो जायेगा मेरा लेकिन नहीं वो खजाना आज कई गुना बढ़ गया। </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"> खैर समय कम था ब्लॉक जाना था जहाँ क़्वार्टर में पिताजी के साथ रहती थी --मन में एक डर था कि शायद मेरा वो घर नहीं मिले मुझे --ये डर सही साबित हुआ। क्योंकि उसे तोड़ कर नया रूप दे दिया गया था मैंने रास्ते में ये सोच लिया था की अगर मेरा वो घर टूट गया होगा तो खेतों के मेड़ों पर बैठ कर पुरानी यादों को जी लुंगी पर मैंने ये कई बार महसूस किया है की कुछ बातें हमारे नियंत्रण से परे होती है। जब मैं वहां पहुंची तो घनघोर बारिश होने लगी और बिजली भी चमकने लगी शायद मेरे साथ प्रकृति भी भावविभोर हो रही थी---उसे कुछ पल का साथ गवारा नहीं था सो --- मैंने मन ही मन उससे एक वादा कर लिया की मैं फिर आऊँगी दो घंटे के लिए नहीं कम से कम दो दिन के लिए। मेरी दीदीमुनि जो मुझे बहुत प्रोत्साहित करती थीं उनसे और रामलाल जिसे पिताजी अपने बेटे जैसा मानते थे से भी भेट हुई पर मेरी सहेली मीरा से भेंट नहीं हो पाई वो अपने पति के पास भागलपुर गई थी। शाम ५ बजे के करीब लौट गई सुखद संतुष्टि के साथ। पतिदेव को तहेदिल से धन्यवाद देते हुए। मै तो हिम्मत हार रही थी ये कहते हुए की पता नहीं वहां कोई मिलेगा या नहीं पर उन्होंने कहा कोई बात नहीं सोचना long drive पे जा रहे हैं। बहरहाल फोन नम्बर ले लिया था और दे दिया था। एक दिन मीरा का फोन आया --उसकी आवाज सुनकर दिल गदगद हो गया,मैंने कहा मीरा-- मुझे तो लगा था कि तुम मुझे भूल गई होगी ? कैसे भूल सकती हूँ मैं तुम्हें निशा ? मैंने अपनी बेटी का नाम निशा रखा है --मुझे पता था की तुम मुझसे मिलने अवश्य आओगी। हाँ --तुम्हारे प्यार की शक्ति ही तो मुझे खींच कर तुम्हारे पास ले गई थी --कहना चाहकर भी मैं नहीं कह पाई मीरा से --बस उसकी बातें सुनती रही। आज जबकि सम्पति के निवेश के नाम पर तथाकथित दोस्त नासूर बनकर अंतहीन और असीम दर्द की सौगात </span><span style="font-size: large;">देने से नहीं चूकते हैं और जरुरत न हो तो पैंतीस साल तो क्या पैंतीस मिनट भी बड़ी मुश्किल से याद रख पाते हैं --वहीँ मीरा जैसी सहेली कुदरत का करिश्मा बन कर मुझे खुशियो से सराबोर कर गई। शायद यही जिंदगी है। </span></b><br />
<div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-9425744074718686852014-09-29T12:07:00.001-07:002014-09-30T02:53:34.961-07:00मधुर मुस्कान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6hWYhRRE3b2_OLbtuaF2i9oj4xqltKyHIANXSPPGFbm8xGZhnHWiymsq9br1Vm6eMI3DYe8fhZfHZTei2lwv7RfqZLbS5PXxhG4oyiopq6BoH-U8S0HiSZkuiflXTRQm4yK6SjyKMyc/s1600/girl.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6hWYhRRE3b2_OLbtuaF2i9oj4xqltKyHIANXSPPGFbm8xGZhnHWiymsq9br1Vm6eMI3DYe8fhZfHZTei2lwv7RfqZLbS5PXxhG4oyiopq6BoH-U8S0HiSZkuiflXTRQm4yK6SjyKMyc/s1600/girl.jpg" /></a><span style="font-size: large;">सुबह के सवा नौ बज रहे होंगे। </span><br />
<span style="font-size: large;">सिलिकॉन सिटी </span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6hWYhRRE3b2_OLbtuaF2i9oj4xqltKyHIANXSPPGFbm8xGZhnHWiymsq9br1Vm6eMI3DYe8fhZfHZTei2lwv7RfqZLbS5PXxhG4oyiopq6BoH-U8S0HiSZkuiflXTRQm4yK6SjyKMyc/s1600/girl.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><span style="font-size: large;">से भंवरकुँआ जाने के लिए निकल</span></a><br />
<br />
<span style="font-size: large;">रही थी। अकेली थी सो क़दमों की </span><br />
<span style="font-size: large;">गति तेज थी कि अचानक पीछे से आवाज </span><span style="font-size: large;">आई -आँटी कहाँ जा रही हैं ?आवाज की </span><span style="font-size: large;">मधुरता से चिहुँक उठी -बिजली की </span><span style="font-size: large;">गति से गर्दन घूमाया एक अनजान और </span><span style="font-size: large;">अपरिचित ६-७ साल की बच्ची की आँखों में </span><span style="font-size: large;">कौतुहल भरा प्रश्न देख कर बड़ा अच्छा लगा। शायद वो मुझे पहचानती थी। मैं पढ़ने के लिए कॉलेज जा रही हूँ -तुम स्कूल जाती हो ? हाँ आंटी -मैं भी स्कूल जाती हूँ। </span><span style="font-size: large;">बच्ची में गज़ब का आत्मविश्वास था। संभवतः वो पास में ही मकान </span><span style="font-size: large;">बनाने वाले मजदूर की बच्ची थी और उसने मुझे मेरी बिटिया के साथ देखा होगा। मैँ आगे बढ़ी पर दिल ने सरगोशी की ,कि बच्ची ने पीछे से आवाज लगाकर रोक लिया पता नहीं बस मिलेगी या नहीं। बचपन से ऐसी बातें सुनती आई हूँ। चार कदम आगे बढ़ी की बस जाते दिखी -दिल धक से रह गया -जा -आज तो छूट गई बस। रविवार था। बिटिया और उसकी रूम मेट सो रही थी --शायद मैंने भी सन्डे मना </span><span style="font-size: large;"> लिया था क्योंकि हमेशा सवा आठ तक घर से निकल जाती थी। खैर मुख्य सड़क तक आकर महू से आनेवाली ब्लू बस में बैठी पर ये क्या ? बस अभी दो किलोमीटर भी नहीं चल पाई की उसका पहिया पंक्चर हो गया। अब तो समय की सुई के साथ दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थी क्योंकि साढ़े दस बजे तक शिक्षा संस्थान पहुंचना जरुरी था। साढ़े दस का मतलब साढ़े दस नहीं तो ? किस्मत से एक खाली ऑटो </span><span style="font-size: large;">मिल गया और मैं समय पर अपने स्थान तक पहुँच गई। आज भी कानों में उस बच्ची की मधुर आवाज गूंजने के साथ हीं चेहरे पर मधुर मुस्कान फ़ैल जाती है पर दिल में एक सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगता है कि लोग </span><span style="font-size: large;">महज एक संयोग को अन्धविश्वास का रूप दे देते हैं ----क्यों ?</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br /></div>
<!-- Blogger automated replacement: "https://images-blogger-opensocial.googleusercontent.com/gadgets/proxy?url=http%3A%2F%2F4.bp.blogspot.com%2F-TL-xhZT70OA%2FVCmsTTJdc4I%2FAAAAAAAABhw%2FIy0O2VYffIY%2Fs1600%2Fgirl.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image%2F*" with "https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6hWYhRRE3b2_OLbtuaF2i9oj4xqltKyHIANXSPPGFbm8xGZhnHWiymsq9br1Vm6eMI3DYe8fhZfHZTei2lwv7RfqZLbS5PXxhG4oyiopq6BoH-U8S0HiSZkuiflXTRQm4yK6SjyKMyc/s1600/girl.jpg" -->Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-18671509461583168082014-04-13T00:21:00.000-07:002015-08-04T10:20:14.788-07:00 धुँधली सी यादें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmSKyraSfqltdFAlAPwPe0E9KTmSMnA6Lc8QbYTnt6d0kQTW_D3mJJuuaGmYKlbLPreqUlaQCHWWO0MLAQRo7Ah274yyESEYg1FWmofWmoSPDDgPO6PcHPh0z8Lmr3YsHLX6Uh5PLMi7c/s1600/fa.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmSKyraSfqltdFAlAPwPe0E9KTmSMnA6Lc8QbYTnt6d0kQTW_D3mJJuuaGmYKlbLPreqUlaQCHWWO0MLAQRo7Ah274yyESEYg1FWmofWmoSPDDgPO6PcHPh0z8Lmr3YsHLX6Uh5PLMi7c/s1600/fa.jpg" /></a><br />
<span style="font-size: large;">दो छोटे-छोटे बच्चों की माँ थीं वो---- चेहरे पे मुस्कान उनकी पहचान थी.सपनों से भरी उनकी आँखें हमेशा ही मुझे उनकी ओर आकर्षित करता था । काले- लम्बे बालों के बीच उनका चेहरा चाँद सा चमकता रहता था। उस पर उनका स्वभाव बहुत अच्छा था। बड़े प्यार से बातें करतीं थीं.…आंटी,,,,, धुँधली सी यादें हैं ---मैं शायद</span><br />
<span style="font-size: large;">कक्षा चतुर्थ में पढ़ती थी। ।मेरे ख्याल से अंकल सरकारी डाक्टर थे। तभी उन्हें क़्वार्टर मिला था । वे भी देखने में बड़े सुन्दर थे ---सुंदरता के मामले में ऐसी जोड़ी मैंने शायद अभी तक नहीं देखा है। आंटी के घर के पास हीं मेरा स्कूल था। उनके दोनों बच्चे मुझसे घुल-मिल गए थे। मौका मिलते हीं मैं बच्चों से और आंटी मुझसे बात कर लेती थीं। बहुत अच्छा लगता था मुझे उनसे मिलकर।उम्र में मैं बहुत छोटी थी पर आंटी बहुत बातें शेयर करतीं थीं मुझसे। अचानक एक दिन आंटी ने बताया की अब उन्हें दो कमरे का घर छोटा पड़ने लगा है --बच्चे बड़े हो रहे हैं। बड़ा क़्वार्टर नहीं मिलने की वजह से उन्हें कहीं किराए से मकान लेना होगा। उन्हें भी दुःख हो रहा था और मुझे भी --पर जाना तो था हीं । मेरा भी उस स्कूल में वो अंतिम साल था। छठी कक्षा में मेरा एडमिशन कन्या विद्यालय में करवाना था। जिससे अपनापन मिलता है उससे जुदाई हमेशा दुखदाई होती है --पर मिलना -बिछुड़ना प्रकृति का नियम है --ये बालपन में हीं समझ लिया था। किन्तु जिससे आप दिल से जुड़े हुए रहते हैं --उससे मिलाने का प्रकृति भी भरपूर प्रयास करती है -छठी कक्षा में एडमिशन के बाद जब मैं स्कूल जा रही थी तो जिस रस्ते से होकर मुझे जाना था उसी के पास में वो आंटी मुझे दिख गईं -दोनों खुश हो गए। बस उस दिन से आंटी स्कूल आते और जाते समय अधिकतर दिख हीं जाती थीं। मेरे ख्याल से आंटी अंतर्मुखी थीं क्योंकि उनकी दोस्ती नहीं थी किसी से ज्यादा। आते-जाते हम एक दूसरे से बात कर लेते थे। एक दिन अचानक आंटी का चेहरा देख मैं घबरा गई। उनकी आँखें लाल-लाल हो रही थीं। मैंने पूछा -क्या हुआ आंटी --आप रोईं हैं क्या ?उन्होंने कहा--कल तुम्हारे अंकल को कुछ लोगों ने बहुत बहुत मारा है---हाथ से नहीं--लोहे की जंजीर से--क्यों मारा ? पूछने पर उन्होंने बताया की आदिवासी इलाके में जो शायद अंकल का ड्यूटी-स्थल था --लोगों ने अंकल को किसी आदिवासी औरत के साथ संदिग्ध अवस्था में देख लिया था कई बार उन्हेँ धमकाया भी गया था पर उनकी बात नहीं मानने पर सभी लोग एक-जूट हो गए और अंकल को बुरी तरह से मारा। आज भी मार की उस काल्पनिक छवि से मैं अंदर से दहल जाती हूँ। अपने पति के शरीर पर पड़े लोहे के जंजीरों के निशाँ से आंटी को कितनी तकलीफ हुई होगी! जिस चेहरे पर हमेशा ख़ुशी देखी हो-- उस चेहरे पर आँसू देखना बड़ा कष्टदायक होता है। अंकल के लिए मुझे बिलकुल दुःख नहीं हुआ पर आंटी के लिए बड़ा दुःख हुआ। बात में कहीं -न कहीं दम होगा तभी उन लोगों ने ये कदम उठाया होगा क्योंकि जहाँ तक मेरा अवलोकन है आदिवासी बड़े सच्चे और सीधे होते हैं..इतनी प्यारी बीवी और इतने प्यारे बच्चे के रहते अंकल के इस भटकाव से दिल में उनके लिए जहाँ नफ़रत की भावना ने जन्म लिया वहीँ उन आदिवासी की पीठ ठोकने की इच्छा हुई। उस समय छोटी थी , उतनी समझ नहीं थी पर आज भी मेरे विचार जस के तस हैं। भ्रष्टाचार और अराजकता के इस माहौल में कभी-कभी उन आदिवासियों की याद आती है। हो सकता है की किसी और वजह से उन्होंने अंकल की पिटाई की हो पर दिल उन आदिवासी को गलत मानने की गवाही नहीं देता। आज हमारे आसपास ऐसी कई घटनाएं घट रही है ,,अवैध सम्बन्ध फल-फूल रहे है। किसी की माँ-बहन और बेटी को जलील किया जा रहा है। । हम इन सबकी जिम्मेदारी शासन पर डालकर संतुष्ट हो रहे हैं। क्या हमारा कर्तव्य नहीं है की हम उन पापियों को सबक सिखाएं ? चाहे जिस रूप में हो। लोग कहते हैं की हम दूसरों की फटी में टांग नहीं अड़ाते। गलत तर्क है ये। याद रखिये अगर आपके आसपास गलत लोग रह रहे हैं तो कल को आपके घर में बड़ी घटना घट सकती है। इसलिए जागरूक रहिये और स्वथ्य समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाइए। आपकी सतर्कता से अगर किसी की जान बचती है या किसी का घर तबाह होने से बचता है तो आपको ख़ुशी मिलेगी। ये आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।</span><br />
<br /></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-52426785376194204062014-02-07T08:54:00.001-08:002014-02-07T08:58:30.010-08:00माँ और मजबूरी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxooXosvrmHA7a6oZ-I8p66hmiO1COPiVkR710PHpcBTi666BKKV1NNXqGdHLitmUTRgI0T3rXHZ_SpFeK9IFBVpVelZP4kquqG92VA3VeLkHL7uNNJ5IOij2goL5T4j6yyVfcdtnzQ3Q/s1600/ma.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxooXosvrmHA7a6oZ-I8p66hmiO1COPiVkR710PHpcBTi666BKKV1NNXqGdHLitmUTRgI0T3rXHZ_SpFeK9IFBVpVelZP4kquqG92VA3VeLkHL7uNNJ5IOij2goL5T4j6yyVfcdtnzQ3Q/s1600/ma.jpg" height="320" width="266" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>छोटे से बच्चे को क्रैच में छोड़ते समय माँ की आँखों में आँसूं एवं दिल में दर्द था ----माँ छोड़कर जा रही है ये देख बच्चा जार-बेजार रो रहा है पर माँ क्या करे उसे नौकरी भी करना है ताकि बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो सके---</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>समय बदला-- वक्त ने करवट ली ---</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b> माँ दरवाजे पर खड़ी है --उनकी आँखें आज भी भरी हैं और दिल में दर्द भी है क्योंकि आज उनका बेटा पढ़लिख कर--- बड़ा आदमी ? बन गया है और बीवी के साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपने आशियाने की ओर कदम बढ़ा रहा है। वक्त के साथ सिर्फ एक बात नहीं बदली ---माँ की आँखों में आँसू और दिल में दर्द---माँ बेटे के साथ जाना चाहती है पर नहीं जा सकती वो कल भी मजबूर थी और आज भी मजबूर है--कल उसकी मजबूरी नौकरी थी और आज बेटे-बहू की आज़ादी - सब कुछ बदल कर भी कुछ नहीं बदला शायद इसे हीं जीवन कहते हैं। माँ और मजबूरी का बड़ा गहरा नाता है। </b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b> </b></span></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-76284973256509738052013-12-05T21:51:00.001-08:002013-12-06T19:41:06.611-08:00अवध एक्सप्रेस का लेडीज़ कम्पार्टमेंट <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDyebmQLo9AvJnR6AQBqKGs_3y3MZ7jdP3A18l3e1a6VeEQatlDimOVnmd85Dv-VvvMKEKrlwkyWXS0bEc9gZmARwoDIyYSGgpjKKEb4D_SPtRqfiNXZOOJlqItuP0h0vDWW27i4GUy60/s1600/yatra.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDyebmQLo9AvJnR6AQBqKGs_3y3MZ7jdP3A18l3e1a6VeEQatlDimOVnmd85Dv-VvvMKEKrlwkyWXS0bEc9gZmARwoDIyYSGgpjKKEb4D_SPtRqfiNXZOOJlqItuP0h0vDWW27i4GUy60/s1600/yatra.jpg" /></a><b><span style="font-size: large;">तत्काल सफ़र करना कितना मुश्किल काम है ये एक भुक्तभोगी ही समझ सकता है। मैंने अभी ऐसी ही कई यात्रायें की है। अवध एक्सप्रेस के लेडीज़ कम्पार्टमेंट में ---जहाँ कि औरतें कम और सामान ज्यादा रहता है। गाडी के सबसे पीछे वाली बोगी -सुरक्षा कि कोई व्यवस्था नहीं -किसी को खड़े होने कि जगह नहीं मिलती तो कोई रास्ते में ही लेटी या बैठी रहती है। एक औरत के साथ चार सामान --कोई देखनेवाला नहीं ,मुम्बई जानेवाली और मुम्बई से आनेवाली निम्न वर्ग की महिलाओं से भरा रहता है कम्पार्टमेंट। शामगढ़ से लखनऊ तक एक बार भी कोई गार्ड नहीं आया। सभी औरतें इतनी बुरी तरह से लड़ती हैं कि उसका वर्णन करना भी मुश्किल है। भगवान की दया से मुझे सीट मिल जाती है पर जो डरपोक किस्म कि औरतें होती है उसे रास्ता भी नहीं मिल पाता। कितना कठिन है ऐसी यात्रा को अंजाम देना और इसका जिम्मेदार कौन है ? कई सवाल ऐसे हैं जिनका कोई जवाब नहीं है। पर मैं ऐसे सफ़र का भी भरपूर आनंद लेती हूँ। क्योंकि सफ़र तो सफ़र है चाहे वो दूरियों का सफ़र हो या जिंदगी का----- उसे कैसे जीना है ये अपने हाथ में है। </span></b></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-33770163779805398722013-10-20T10:04:00.000-07:002013-10-20T10:04:49.699-07:00रिश्तों के रेगिस्तान में <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: large;">रिश्तों के रेगिस्तान में </span></b><br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH2wZBQMaD-XDhlRg2_NgBx7VXICRCLXNeFtJti3B4YY26nZHQM03jYnfakP19WvLt3COw_-IsT7nlE0fdl1vcIwdNsuKXP_PBW_zjmMPjy2ggYoe0YacUi8S4bXUeQJOORyiZdpRaZ9Q/s1600/cac.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="199" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH2wZBQMaD-XDhlRg2_NgBx7VXICRCLXNeFtJti3B4YY26nZHQM03jYnfakP19WvLt3COw_-IsT7nlE0fdl1vcIwdNsuKXP_PBW_zjmMPjy2ggYoe0YacUi8S4bXUeQJOORyiZdpRaZ9Q/s320/cac.jpg" width="320" /></a><b><span style="font-size: large;">यादों के फूल खिलते हैं </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;">कभी आँसू ,कभी मुस्कान </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;">कभी शूल बनकर चुभते हैं.……. </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b>
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b>
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं.…. पर कैसा परिवर्तन ? ये सिर्फ भुक्तभोगी ही समझ सकता है। मेरे पति बैंक में उच्च पद पर पदस्थ हैं पर ख्यालों से दकियानूसी। मेरे ससुर जी ने उन्हें सिखाया था कि औरतों पर हमेशा शक करो ,उसे पैसे न दो तो वो </span></b><b><span style="font-size: large;">नियंत्रण में रहती है। मै भी नौकरी करती थी ( आज भी वो शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं ) घर के सारे खर्च मेरी कमाई से चलता था। मेरे पति को मेरे ऊपर हमेशा शक होता था। कहीं बाहर घुमाने ले जाते तो घर आकर इस </span></b><b><span style="font-size: large;">बात पर लड़ते थे कि सारे पुरुष तुम्हें घूरते हैं। मै नौकरी छोड़ने तक के लिए तैयार रहती थी क्योंकि मुझे घर </span></b><b><span style="font-size: large;">में रहना पसंद था। पर पति को पैसे भी चाहिए था। विकृत मानसिकता वाले पुरुष थे वो। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> (उच्च पदस्थ तीन भाइयों की लाडली बहन हैं वो। जो उनके जरुरत के समय हमेशा हाजिर हो जाते हैं। बेटा भी इंजीनियर है अच्छी कम्पनी में)</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> घर को बचाने के लिए मैंने हर सम्भव कोशिश की पर एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे कहा.… माँ.…तुम इस इंसान के साथ क्यों और किसलिए रह रही हो ? उस समय मेरा बेटा १० वीं कक्षा में था। बेटे की बात सुन मेरा दिल पसीज गया क्योंकि वो इंसान हमदोनों </span></b><b><span style="font-size: large;">माँ-बेटे को परेशान करता था। आख़िरकार मै पति का साथ छोड़ अलग रहने लगी। मै अपने पति से बहुत प्यार करती थी कहते हुए उनकी आँखें भर आईं। आप आज भी अपने पति से प्यार करती हैं ? मेरे प्रश्न पूछने </span></b><b><span style="font-size: large;">पर स्वीकृति में उन्होंने सिर हिलाया। धन्य है नारी की ऐसी सहनशीलता और समर्पण । बात का क्रम जारी रखते हुए उन्होंने बताया तीन साल पहले वो मेरे पास आये थे कि मुझे तलाक दे दो पर मै तलाक देकर किसी अन्य </span></b><b><span style="font-size: large;">औरत की जिन्दगी ख़राब नहीं कर सकती ,सच कितना बदनसीब होगा वो पति जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हो अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर सका। धिक्कार है ऐसे इंसान पर जो अपनी बुद्धि-विवेक से काम नहीं लेकर कठपुतली बन अपने जीवन में जहर घोल लेता है । </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"> पति से जुदाई की पीड़ा ,बीते दिनों की कसक उसके चेहरे पर है लेकिन वो अपने बेटे के साथ खुश है। काश कि उसके पति ने अपनी पत्नी और बेटे को अहमियत दी होती……. </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"> पर समय रहते कहाँ समझ में आती है अच्छी बातें ?……. शायद यही जीवन है। </span></b></div>
<b><span style="font-size: large;"></span></b><br />
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b></div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-66808224492917424422013-10-11T08:26:00.000-07:002013-10-11T08:26:08.253-07:00..प्यार एक पवित्र भावना है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDgeL_PHQcbB61y6m8dGRi84KZlwyKJ-OcXCguwMPdDkO7-gjhKCfG5NXXVZZbO1MBK5qArQxtyA9dTlSTcSLoASITpcdp3o-2oxnBxsBFIZhu0rEZ1Uk0eOJ1-F_97AeCTQpLLSUdbm0/s1600/love.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDgeL_PHQcbB61y6m8dGRi84KZlwyKJ-OcXCguwMPdDkO7-gjhKCfG5NXXVZZbO1MBK5qArQxtyA9dTlSTcSLoASITpcdp3o-2oxnBxsBFIZhu0rEZ1Uk0eOJ1-F_97AeCTQpLLSUdbm0/s1600/love.jpg" /></a>
<b><span style="font-size: large;"><span id="goog_1391483573"></span><span id="goog_1391483574"></span>दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे .....उन्होंने साथ जीने और मरने की कसम खाई थी पर .....उनका ये प्यार बड़ों को गवारा नहीं हुआ .....जाति बंधन आड़े आ गया ....समय से पहले दो फूल मुरझा गए .....लड़की की शादी हो गई पर पहले प्यार को भूल न पाई . लड़का भी कहाँ भूल पाया ? दिल के हाथों मजबूर होकर लड़की के घर के पास आकर आवाज लगाता .छोटी बहन उसके प्यार की राजदार थी .बहन के आँसू कोई देख न ले इस बात का प्रयास करती . दोनों प्रेमियों ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया .उनका प्यार आज भी जिन्दा है एक दूसरे के दिलों में क्योंकि उनका प्यार जिस्मानी नहीं ...आत्मिक था .जिसका आधार त्याग था ....लूट-खसोट नहीं ....वर्तमान समय में प्यार करनेवाले की गन्दी हरकतें देख प्यार पर प्रश्न चिन्ह लगाने को जी चाहता है ....प्यार एक पवित्र भावना है जिसे समझना सबके वश की बात नहीं .</span></b></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-59913090493841102442013-09-18T10:19:00.000-07:002013-09-18T10:29:42.058-07:00बहन के लिए इतनी नफरत ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWAvOQCeJTmU-8JkvuUU-Hn-N9LuVIdJYgcukBxDiV87PkdnCHJGRhyphenhyphenB6vPgNNRuEl4sLXEO8a_M_wR5T-1DZDCMVspV8Tb2HpFA3EkuIPAho-smviGyhD4CtpfKFoqazzVqccI6jOk94/s1600/weeping.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWAvOQCeJTmU-8JkvuUU-Hn-N9LuVIdJYgcukBxDiV87PkdnCHJGRhyphenhyphenB6vPgNNRuEl4sLXEO8a_M_wR5T-1DZDCMVspV8Tb2HpFA3EkuIPAho-smviGyhD4CtpfKFoqazzVqccI6jOk94/s320/weeping.jpg" width="320" /></a> <span style="font-size: large;">छोटी बेटी से मिलने जा रही थी एक माँ। </span><span style="font-size: large;">बड़ी बेटी के पास रहती थी क्योंकि</span> <br />
<span style="font-size: large;"> विधवा थी,दो बेटियाँ हीं थी।</span><br />
<span style="font-size: large;"> बड़ी बेटी का पति इंजीनियर है और उसके दो बच्चे हैं --एक बेटा जो अभी</span><span style="font-size: large;"> </span> <span style="font-size: large;">पढाई कर रहा है दिल्ली में और एक बेटी जो कोलकाता में नौकरी कर रही है। इसी साल मई में उसकी शादी हुई है। बड़ा दामाद बहुत पैसेवाला है क्योंकि चार जिले का निर्माण कार्य उसके अधीन रहता है। विधवा के पति की कैंसर से मौत हो गई। वो भी उच्च पदस्थ </span><span style="font-size: large;"> व्यक्ति थे। पेंशनधारी थे। अपने जीते जी अपनी सम्पति का बँटवारा करके गए थे दोनों बेटियों के नाम। विधवा के पास अभी भी खेती के रूप में काफी संपत्ति है और पेंशन भी मिलता है। खेती का खर्च वो खुद करती है पर उपज बड़ी बेटी हीं लेती है क्योंकि छोटी बेटी घर ( बिहार-भागलपुर ) से दूर राजस्थान के चितोड़ में रहती है। बड़ी बेटी की बेटी की शादी हुई पर उस औरत की बेटी यानी दुल्हन की मौसी उसमें शरीक नहीं हुई क्योंकि कुछ दिन पहले वो एक बिटिया की माँ बनी थी। छोटा दामाद भी कृषि विभाग में उच्च पद पर है -बेटी भी पढ़ी लिखी है पर बच्चे छोटे होने की वजह से नौकरी नहीं कर पा रही है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> नातिन की शादी की वजह से छोटी बेटी के पास नहीं जा पाई थी। चूँकि अब सारा काम निबट गया था। अतः वो अपनी नवजात नातिन से मिलने जा रही थी। साथ में बड़ी बेटी का भांजा था जो उसे रह-रह कर कुछ बातें समझा रहा था। महिला की उम्र यही कोई साठ साल के करीब होगी । मै १४.७ . १३ को भागलपुर -अजमेर से चंदेरिया आ रही थी ,वो महिला मेरी सहयात्री थी। धीरे-धीरे परिचय बढ़ा और दुकड़ों-दुकड़ों में उसने अपनी आप बीती सुनाई । साथ में जो लड़का था वो आक्रोशित होकर बता रहा था -मेरी मामी बहुत ख़राब है, वो बहुत लोभी है अपनी माँ से अच्छा व्यवहार नहीं करती ,अपनी बहन को तो देखना हीं नहीं चाहती। सगी बहन को अपनी बेटी की शादी में नहीं बुलाया। मैंने जब उस महिला से पूछा तो उनका जवाब मिला कि छोटी बेटी को उसी समय डिलीवरी हुई थी इसीलिए वो नहीं आ पाई पर उनकी आँखों में दुःख और लाचारी साफ झलक रही थी। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> वास्तविकता ये थी कि बड़ी बेटी ने चाल चलकर अपनी बेटी की शादी का समय ही वही लिया और शादी के नाम पर अपनी माँ को छोटी बहन के पास नहीं जाने दिया। साथ वाला लड़का उनकी हर बात का जवाब दे रहा था। उनको समझा रहा था --मेरी मामी के पास साल भर मत रहिये। ६ महीने छोटी के पास और ६ महीने बड़ी के पास रहिये। वो आप से नहीं आपके पैसों से प्यार करते हैं। मुझे सुनाते हुए कहा -आंटी ! मामी ने नानी को आम भी नहीं खरीदने दिया जबकि अभी कुछ दिन पहले अपनी बेटी को आम देकर आई है कोलकत्ता से। नानी ने आम खरीदने केलिए कहा तो उन्होंने कहा कि गर्मी बहुत है --आम ख़राब हो जाएगा। …आप बताइए ए.सी. में एक दिन में आम कैसे ख़राब होगा जबकि मौसी ने कई बार फोन करके नानी को आम लेने के लिए कहा था पर मामी ने साफ मना कर दिया। मेरे पूछने पर उस महिला ने बताया की मेरी बड़ी बेटी और छोटी बेटी में १८ साल का अंतर है। बड़ी बेटी ने छोटी को आज तक दिल से नहीं अपनाया। मरने से पहले मेरे पति ने कहा था बड़ी बेटी की हर बात मानना। बहुत ही सरल ह्रदय की महिला थी वो मैंने उन्हें कहा की आपके पति ने उसकी गलत बात मानने के लिए थोड़े कहा था अगर आप हिम्मत करके </span><span style="font-size: large;">आम खरीद लेतीं तो वो कुछ नहीं कर पातीं ,ऐसे तो आप उसे बढ़ावा दे रही हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> आपको बड़ी बेटी के ऐसे व्यवहार का विरोध करना चाहिए। इतने में उनकी छोटी बेटी का फोन आ गया। वो मम्मी से पूछ रही थी --कि मम्मी आपके पास ज्यादा सामान तो नहीं है। नहीं बेटा --सिर्फ एक बैग है जिसमें मेरा सामान है। फोन रखने के बाद उनकी उदासी देख मुझे बड़ा दुःख हो रहा था --मेरे पास ५० आम थे जो मेरे पति और बेटे के लिए लेकर आ रही थी। बेटी साथ थी। हम दोनों माँ-बेटी ने आम खा हीं लिया था। वस्तुतः बिहार का मालदह ( लंगड़ा आम )आम </span><span style="font-size: large;">खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है। </span><span style="font-size: large;"> मुझे भी मेरी बेटी और पतिदेव के दोस्त मना कर रहे थे पर मेरे पास दो घंटे थे उस समय का उपयोग कर भागलपुर से ही मैं आम खरीद कर उसे पैक करा कर ले आई थी। माँ हूँ ---माँ का दुःख समझ में आ रहा था। साथ में मेरी बिटिया भी थी। हमने आपस में बात किया और ---अपनी सहयात्री से कहा कि आंटी मेरे पास आम है </span><span style="font-size: large;">आप दुखी मत होइये अपनी बेटी के लिए </span><span style="font-size: large;">कुछ आम ले जाइये। वो कुछ बोलती उनके पहले ही उनके साथ वाला लड़का घबरा कर बोल उठा नहीं मेरी मामी को पता चलेगा तो वो मेरी नानी के साथ मेरी हालत भी ख़राब कर देंगी। मैंने कहा --उन्हें कैसे पता चलेगा ? तो उसने बताया की मौसी एक सात साल का बेटा भी है वो बता देगा। वो औरत कभी मुझे देख रही थी तो कभी साथ वाले लड़के को। अंत में दुखी होकर बोली मेरे दामाद होते तो वो जरुर भेजते चूरा और आम मेरी बेटी के लिए। मेरी बेटी मेरा </span><span style="font-size: large;"> दर्द नहीं समझती पर मेरे दामाद को सब कुछ समझ में आता है। मुझे मालूम है मेरी छोटी बेटी मेरे सामान के बारे में इसीलिए पूछ रही थी </span><br />
<span style="font-size: large;">वो सिर्फ यही पता लगाना चाह रही थी कि मै आम ला रही हूँ या नहीं। मेरे नाती ने भी कई बार मुझसे कहा था की नानी आम जरुर लाना। साथ वाला लड़का उन्हें बार-बार समझा रहा था---कि मामी से डरा मत करो आपके पास अपना पैसा है ,उसे अपने हिसाब से खर्च कर सकती हैं आप। मैंने फिर उनसे आग्रह किया आप संकोच मत कीजिये। आम ले लीजिये मुझसे पर आख़िरकार में डर की जीत हुई आम तो नहीं लिया उन्होंने लेकिन मुझसे वादा किया की आगे से बेटी के इस तरह के व्यवहार का विरोध करेगी। </span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> कहते हैं कि बेटी माँ के दिल का दर्द समझती है पर कैसी बेटी थी वो जो माँ का दर्द समझने के बजाय उनके दर्द को बढ़ा रही थी। अपनी बेटी को खुद जाकर आम पहुँचा आई और बहन के लिए इतनी नफरत ? छोटे बच्चे हो तो उसका व्यवहार क्षम्य है पर इस उम्र में ऐसा अपरिपक्व व्यवहार ? माँ और बहन को दुखी कर क्या वो खुश रह पाएगी ? शायद नहीं-- कभी न कभी किसी न किसी रूप में उसे इसकी भरपाई अवश्य करनी पड़ेगी। पर ईर्ष्या और नफरत की आग में इंसान सब कुछ भूल जाता है। जब तक बात समझ में आये तब तक बहुत देर हो जाती है. शायद यही जीवन है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-7862373267391830832013-08-20T06:25:00.000-07:002013-09-18T05:23:35.783-07:00 भाई की बात और डांट दोनों में दम था<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfV-ysrHYuoyNDtM5lDUGZFzI7B4lZbqo8xPf0gHESeiXfP8zk9rP7YVzrxgGhAcQF80b_ZuxXkThyEWb9syrCbkuM25w-vF1welAQoQKmdhL_ovn4yrib6AFK7W3LPm5KF9jEh6NB1OE/s1600/Image036.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfV-ysrHYuoyNDtM5lDUGZFzI7B4lZbqo8xPf0gHESeiXfP8zk9rP7YVzrxgGhAcQF80b_ZuxXkThyEWb9syrCbkuM25w-vF1welAQoQKmdhL_ovn4yrib6AFK7W3LPm5KF9jEh6NB1OE/s640/Image036.jpg" width="640" /></a><span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">माँ -जाई के प्यार से पति के संग --पीहर के रंग </span><br />
<span style="font-size: large;">भरी रहे कलाई </span><br />
<span style="font-size: large;">लिए साथ में </span><br />
<span style="font-size: large;">सतरंगी यादें </span><br />
<span style="font-size: large;">खुशियों की घड़ी </span><br />
<span style="font-size: large;"> आई.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">सन १९८४ की बात है। उस समय मैं बारहवीं (I.Sc.) कर रही थी। मैं और मेरा भाई एक कक्षा में हीं थे उसका विषय</span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">गणित</span><span style="font-size: large;"> था और मेरा जीवविज्ञान । हम दोनों को दोनों के सहपाठी के बारे में सारी बातों की जानकारी रहती थी। मेरे साथ मेरी एक सहपाठी थी जिसका नाम था -गौरी। पढने में औसत थी। उसकी हरकतें बड़ी विचित्र हुआ करती थी। सारे लड़कों में लोकप्रिय होने के साथ हीं महाविद्यालय के स्टाफ की भी मुँहलगी थी। हालाँकि पढाई के मामले में वो हमेशा मुझसे मदद लेती थी और मेरे उसके सम्बन्ध भी अच्छे थे पर एक बात मुझे बड़ी अखरती थी कि प्रायोगिक कार्य करते समय जो डिमांसट्रेटर हमें प्रयोग सम्बन्धी कुछ बातें समझाने आते थे वो अधिकतम समय गौरी के आसपास हीं मंडराते रहते थे। बार-बार पूछने के बावजूद वो मुझे नज़रअंदाज कर देते थे। गौरी को वास्तविकता का ज्ञान था पर वो भी मजे लेती थी। नम्बर के चक्कर में कोई विद्यार्थी उनसे पंगा नहीं लेता था। इसके पहले मैंने ऐसा कभी देखा नहीं था। मुझे बहुत दुःख होता था। मैंने बहुत कोशिश कर ली ,बहुत तैयारी भी करके जाती थी ताकि उस </span><span style="font-size: large;"> डिमांसट्रेटर </span><span style="font-size: large;">को मुझे डाँटने का मौका न मिले और मुझे भी समझा दे क्योंकि स्कूल में ऐसा माहौल नहीं देखा था मैंने। वस्तुतः होता ये था कि प्रयोग सम्बन्धी सारी बातों की जानकारी </span><span style="font-size: large;">डिमांसट्रेटर हीं देते थे। अंत में सर आते थे। सप्ताह में एक दिन रसायन का प्रयोग होता था और मुझे बड़ा ख़राब लगता था ,एक दिन की बात हो तो चल जाए पर हमेशा यही होता था। </span><span style="font-size: large;">दूसरी लड़कियों</span><span style="font-size: large;"> अन्य लड़कों की सहायता ले लेती या फिर गिडगिडाती उस </span><span style="font-size: large;">डिमांसट्रेटर</span><span style="font-size: large;"> के सामने। काम तो मेरा भी हो जाता था पर </span><span style="font-size: large;">डिमांसट्रेटर</span><span style="font-size: large;"> का ये पक्षपात मुझसे सहन नहीं होता था। जब सहनशीलता की सीमा जवाब देने लगी तो मैंने अपने भाई दिलीप कुमार जो कि आज एयर -पोर्ट बोधगया में इंजीनियर है से अपनी परेशानी बताई। वैसे तो वो मेरा छोटा भाई है पर उसका व्यवहार बड़े भाई जैसा था। </span><span style="font-size: large;"> वो जो भी कहता था वो मेरे लिए पत्थर की लकीर हुआ करती थी ना की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। हम-दोनों बिना किसी दुराव-छिपाव के अपनी परेशानियाँ साझा करते थे और उसका समाधान भी निकालते थे। इसलिए </span><span style="font-size: large;">जब उस परिस्थिति में मुझे दुःख होने लगा तो मैंने उसे बताया की </span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">डिमांसट्रेटर</span><span style="font-size: large;"> गौरी को तो बड़े प्यार से बताते हैं पर मुझे नज़र-अंदाज करते हैं। बात पूरी होने के पहले हीं मेरे भाई ने मुझे जबरदस्त डांट लगाई जिसे मैं आजतक नहीं भूल पाई हूँ वो शायद भूल गया होगा पर उसकी वो सीख </span><span style="font-size: large;">मुझे आज भी राह दिखाती है। उसने डांटते हुए मुझसे कहा था--ऐसी लड़की से अपनी तुलना करती है ? तुम्हे पता है वो कैसी लड़की है ? सच मैं बता नहीं सकती पर दिल के जिस भाग में मुझे दुःख सा महसूस होता था भाई की डांट से वहां खट से चोट लगी और मेरा दुःख तुरंत छू -मंतर हो गया। ऐसा नहीं है की किसी की बुराई से मेरे अहम को तुष्टि मिलती है पर भाई की बात और डांट दोनों में दम था। उसकी बातों में सच्चाई थी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0ZSSG5VsPT8HFkgQ5is5Y83ttmlYxBxyIJIKJRog-O61-8D8855pR8LNKev33b_eZaftzllp47jcPV58RfwB43Fyw3Lu5l_WRnqUYQdA7I1Xsaemn04tnKQl7F5TUQTWvtLtvsPbddfg/s1600/Image007.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0ZSSG5VsPT8HFkgQ5is5Y83ttmlYxBxyIJIKJRog-O61-8D8855pR8LNKev33b_eZaftzllp47jcPV58RfwB43Fyw3Lu5l_WRnqUYQdA7I1Xsaemn04tnKQl7F5TUQTWvtLtvsPbddfg/s640/Image007.jpg" width="480" /></a></div>
<span style="font-size: large;"> पीहर की पुरवाई -भाभी </span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">और</span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">भाई</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> आज भी कई बार मुझे ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है किन्तु अब दुःख नहीं होता बल्कि ऐसी औरतों पर दया आती है जो लटके-झटके दिखा कर अपना काम निकाल लेती है और ईमानदार तथा कर्तव्यनिष्ठ औरतों को परेशान करती है। कई बार पुरुष सहकर्मी मजाक में बोलते हैं की औरतें रो- धो कर अपना काम करवा लेती है पर मैं तुरंत प्रतिरोध व्यक्त करती हूँ। पर सच्चाई तो यही है की कई जगह ऐसी औरतें और लडकियाँ मिल जाती हैं, जो अपनी मजबूरियों, अपने पति या घरवालों की बुराई कर अपने लिए सहानुभूति अर्जित कर अपना उल्लू सीधा कर लेती है भले हीं किसी अन्य का नुकसान क्यों न हो। पर उन्हें पता होना चाहिए की शार्ट -कट का रास्ता कई बार इतना खतरनाक होता है की उसकी जिन्दगी भर भरपाई नहीं हो पाती है। अपने आसपास ऐसी कई घटनाएँ दिख जाती है पर किशोर -दिमाग पर छाई भाई के उस सीख से मुझे आज भी संबल मिलता है। सच्ची बात तो यही है की </span><span style="font-size: large;">हमें किसी से तुलना करके दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि हर इन्सान का अपना-अपना स्तर होता है जो अतुलनीय होता है और ये बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि तुलना हमेशा दुःख हीं देता है। मुझे मेरे भाई पर गर्व है। </span></div>
<div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<br /></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDlWjEBdSrPh_WJ-oYC0uW2d4LRZthjHlxMbvnfzP3OPyBrr5n7QD7IC3CUnBvI33noGpvieYueuEcGDZdJ6KHljN-f3yyE4rfcW7b8iinZQK4N0IeJjeoZa-agC7ssMvz-KAzlD2PRRY/s1600/Image024.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDlWjEBdSrPh_WJ-oYC0uW2d4LRZthjHlxMbvnfzP3OPyBrr5n7QD7IC3CUnBvI33noGpvieYueuEcGDZdJ6KHljN-f3yyE4rfcW7b8iinZQK4N0IeJjeoZa-agC7ssMvz-KAzlD2PRRY/s640/Image024.jpg" width="480" /></a></div>
<span style="font-size: large;"> मेरी आँखें के दो तारे -भतीजा -उमंग ,भतीजी -ख़ुशी </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh96Pv_tK4gVD7kOOHYR7AghtyqaIHOQLScPcsPVL8VYZUZJIGqqpUr9NdP1gOPcefz0a5x4T-VFt3xeIWN-_qf2V05luaimhl5xIGZGTmFDnVc1VAhojf4HVrozZd1neOgtwrfa8fAcLY/s1600/Image040.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh96Pv_tK4gVD7kOOHYR7AghtyqaIHOQLScPcsPVL8VYZUZJIGqqpUr9NdP1gOPcefz0a5x4T-VFt3xeIWN-_qf2V05luaimhl5xIGZGTmFDnVc1VAhojf4HVrozZd1neOgtwrfa8fAcLY/s640/Image040.jpg" width="640" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">बोधगया (मुक्ति का धाम ) में पूर्वजों की यादों में लीन निगाहें -कहाँ तुम चले गए ?</span></div>
</div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-51051585967906102682013-05-29T11:05:00.004-07:002013-09-18T05:31:26.042-07:00एक था राजा .<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0t57sSyzDxEvPGD09NlGeuOTB-NSzvBpPXYgqydHMfE3Yl4lyUsRXTKncI2AYa7W_yTqbsoiC2V9MuT6FyIu1rYLiNkH2ps_MhXpPZA6_wU7NlP4sC3iB9gigMQ_pWq47GYIWhag52p4/s1600/raja.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0t57sSyzDxEvPGD09NlGeuOTB-NSzvBpPXYgqydHMfE3Yl4lyUsRXTKncI2AYa7W_yTqbsoiC2V9MuT6FyIu1rYLiNkH2ps_MhXpPZA6_wU7NlP4sC3iB9gigMQ_pWq47GYIWhag52p4/s1600/raja.jpg" /></a><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial;"><span style="font-size: large;">एक था राजा .....उसे दौलत की बहुत भूख थी ......</span></span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">दौलत पाने के लिए उसने भगवान् की बड़ी तपस्या की ..</span><span style="font-size: large;">आख़िरकार उसकी तपस्या रंग लाई ...उसके सामने </span><span style="font-size: large;">भगवान् प्रकट हुए और ...कहा ....वत्स ..मांगों क्या माँगना चाहते हो ...?.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">राजा ने कहा ..भगवन .....वरदान दीजिये कि मै जिसको छुं लूँ वो सोने का </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">बन जाय ....भगवान् ने कहा .....ऐसा ही होगा ..राजा बड़ा खुश हुआ .....राजमहल में वापस </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">आया ......बड़े दिनों बाद अपने भवन में आया था .....भूख लगी थी वो भी जोरदार ..उनके </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">सामने छप्पन पकवान परोसा गया पर ...यह क्या ....? उसके छूते हीं भोजन सहित थाली सोने में </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">परिवर्तित हो चुकी थी .....राजा परेशान ......अचानक राजकुमारी सामने आई ..पिता को </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">सामने देख ख़ुशी से लिपट गई ..और पलक झपकते ही वो सोने में बदल गई .....राजा दुःख में डूब गया....राजा को दुखी देख रानी उसके समीप आई ..पर राजा को छूते ही वो भी सोने की </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">बन गई .....खुशियों की चाहत में राजा दुःख के सागर में डूब गया ....जो उसके पास था वो भी छिन गया .....क्यों ? क्योंकि उसने सोच-समझ कर काम नहीं किया ...लालच के वशीभूत </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">वरदान मांग लिया ....वास्तव में ये कहानी ... ..कल भी प्रासंगिक थी आज भी है और कल भी रहेगी ...खुशीपूर्वक जीने के लिए हमें क्या चाहिए ....पहले हमें ये निर्धारित करना चाहिए ....हमारी प्राथमिकता क्या है ..वो हमीं तय कर सकते हैं ...</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial;">
<span style="font-size: large;">जीवन मे दौलत के साथ-साथ रिश्तों की भी अहमियत है ....इसलिए दौलत के गुरुर में ..</span><span style="font-size: large;">रिश्तों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए ...जो ऐसा करता है ,,,उसके हाथ पछतावे के सिवा कुछ नहीं आता है ...आपको पछताना नहीं पड़े इसलिए ...व्यक्ति .परिस्थिति और घटनाओं को पहचानना और उन में अंतर करना सीखें .....झूठ बोलने से पहले .शक करने से पहले और किसी का विश्वास तोड़ने से पहले अवशय सोचें .... क्योंकि आप जो बोयेंगे वही काटना पड़ेगा ...... धन्यवाद .....</span></div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-61448296553371623142013-05-19T05:03:00.003-07:002013-05-19T05:31:22.306-07:00 पता नहीं था<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUY4uQ-HLSfnEURvZ1imuGSmBYDWigDwicfEqDAnnEOo5nFzNeExnqj_lKPgoxYBJi512mc5j3cmyl1deZBadv-ETMU12AsPSpYDtlR4QV2z9VFBTVZA-ISpoLCttvoFX8seNIyMAl_pE/s1600/KAHTE.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUY4uQ-HLSfnEURvZ1imuGSmBYDWigDwicfEqDAnnEOo5nFzNeExnqj_lKPgoxYBJi512mc5j3cmyl1deZBadv-ETMU12AsPSpYDtlR4QV2z9VFBTVZA-ISpoLCttvoFX8seNIyMAl_pE/s1600/KAHTE.jpg" /></a><span style="color: red; font-size: large;">बहुत छोटा था जब माँ की मौत हो गई थी .बिना वजह भी </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">माँ की डांट और पिता से प्रताड़ना मिलती थी ...</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">बहुत कोशिश करता था की कोई गलती न करूँ पर ऐसा कभी हो नहीं पाता था.....नाते रिश्तेदारों को कहते सुना थी की माँ सौतेली हो तो पिता भी सौतेला हो जाता है .....जब से आँख खोली थी उसी माँ को देखा था ...</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">पता नहीं था मुझे की माँ कैसी होती है और माँ का प्यार कैसा होता है ?</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">पढने की बहुत इच्छा होती थी पर माँ हमेशा कोई न कोई काम बता देती थी .....दिन में बकरी चराने जाता था तो किताबें साथ ले जाता था .....वहीँ पढता था .....कई बार पढने के क्रम में ध्यान नहीं रख पाता था और किसी के खेत बकरी चली जाती थी परिणामस्वरुप माँ और पिता दोनों </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता ....बहुत मुसीबतें आई पर पढना नहीं </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">छोड़ा ....मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा देनी थी ....सोचा १ महीने गणित की कोचिंग ले लूं पर पिताजी ने मना कर दिया ..पर कभी हार नहीं मानी ....मेहनत मजदूरी </span><span style="color: red; font-size: large;"> कर पढ़ाई जारी रखी ....अपने जीवन का संस्मरण सुनाते </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">वक्त रामप्रसाद जी की आँखें भर आई ....आज वो सरकारी नौकरी में अच्छे </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">पोस्ट पर हैं .....हर साल गर्मी की छुट्टियों में गाँव आना नहीं भूलते ....</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">अपने सौतेले भाई-बहन से सम्बन्ध बनाये हुए हैं .....माँ-बाप तो नहीं रहे ..</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">पर अपने जमीं से जुड़े हुए हैं ......उनका कहना है कि जमीं से जुड़े रहे तो आसमान अपना होता है ....</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;"> </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;"> बीते दिनों की यादें उन्हें दुखी नहीं करती ....उनका कहना है की अगर उन्हें सारी सुविधाएँ मिल जाती तो शायद वो वहां तक </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">नहीं पहुँच पाते जहाँ आज हैं ...</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;"> वास्तव में ऐसे लोग प्रेरणा के स्त्रोत होते हैं ..सम्मानीय </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">और पूजनीय होते हैं .....जीवन का आदर्श प्रस्तुत कर औरों को भी जीवन </span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">जीने के लिए प्रेरित करते हैं .......</span></div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-17740101919743914222013-04-22T22:11:00.000-07:002013-04-23T19:35:07.987-07:00 आज वो ...मुझे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
<div style="font-family: arial;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXZn21ZezvMsjwL8OOhELlePgxQ3CXCN5es_DNDPe92cQyCuu20MWxYEBrUCEmAo6-41X48NExRoPpgISzAltyvgZh4JYyl23w3RjjXBSMzoZRKylFA7-4wb3HnU9PkwvJy34BMJwTAis/s1600/moth.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXZn21ZezvMsjwL8OOhELlePgxQ3CXCN5es_DNDPe92cQyCuu20MWxYEBrUCEmAo6-41X48NExRoPpgISzAltyvgZh4JYyl23w3RjjXBSMzoZRKylFA7-4wb3HnU9PkwvJy34BMJwTAis/s1600/moth.jpg" /></a><span style="color: #222222; font-size: medium;"> </span><span style="color: #cc0000; font-size: large;">बचपन में उसने सिखाया था कि गुडिया </span></div>
<div style="font-family: arial;">
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">कैसे बनाते हैं ...उसकी आँखें ,नाक .कान </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">और होंठों को कैसे आकार दिया जाय ..</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">बिना किसी विरोध के मैं उसकी सारी बातें मान </span><span style="color: #cc0000; font-size: large;">लिया करती थी .</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"> कहने को तो उम्र में वो मुझसे छोटी थी ...</span><span style="color: #cc0000; font-size: large;">पर.. बातें बड़ी-बड़ी किया करती थी ....मै चकित </span><span style="color: #cc0000; font-size: large;">भाव से सोचती थी ...छोटी जगह में रहकर भी </span><span style="color: #cc0000; font-size: large;">कितनी अच्छी-अच्छी बातें करती है ....मेरी </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">प्यारी सी चंचल और हँसमुख सखी .....</span><br />
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">उस समय गुड़ियों का ब्याह रचाकर ... हमदोनों </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">खुशियों के साथ आँख-मिचौनी करते थे ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">समय बदला वक्त ने करवट ली ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">आज भी वो उसी तन्मयता के साथ जीवन </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">पथ पर आगे बढ़ रही है .....फर्क सिर्फ इतना </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">है की ....निर्जीव गुडिया के बदले ...</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">सजीव गुड्डे और गुडिया का जीवन सँवार </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">रही है ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"> .उसका जीवन साथी बीच मंझधार में </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">उसे छोड़ भगवान का प्यारा हो गया ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">उसके दुःख से दुखी हो उसकी माँ भी असमय काल की </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">ग्रास बन गई .....</span><br />
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">उसकी सखी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"> .वो आज भी ख़ुशी-पूर्वक </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"> अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही है ...</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">न किसी से कोई शिकवा ..न शिकायत ...न हर्ष न विषाद ...</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">बचपन में भी वो मेरे लिए अनुकरणीय थी और आज भी है ...</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">जहाँ लोग छोटे से दुःख से दुखी हो जीवन को कष्टमय </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">बना डालते हैं ...</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"> .वहीँ मेरी बालपन की सखी ..एक </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">तपस्विनी की भांति अपने जीवन की नैया को अपने दो किशोर </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">बेटे और एक छोटी सी बिटिया के सहारे जीवन के भवसागर </span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">में खेये जा रही है ....शायद जीना ..इसी का नाम है ......</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">बचपन में उसने मुझे गुडिया बनाना ...सिखाया था ....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;">आज वो ...मुझे ..जीवन ..जीना सिखा रही है .....</span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
</div>
<div>
<span style="color: #cc0000; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><br /></span></div>
</div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-21638569731965763752013-04-07T08:32:00.001-07:002013-04-07T08:32:10.428-07:00बहुत देर हो गई ..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWOSeu9jbConX1E3TeabqMLCndDyr5rZlRHI1GkFA-3Af_hUJi5C17oa8PxH0Xbk7hDL1QepoIle2bOcafTAdmhVZ4N558VVSQqG2r8jWXZf23GagmaSs_XNRfOEJ-HoxfAX-ldSu2rKU/s1600/good.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWOSeu9jbConX1E3TeabqMLCndDyr5rZlRHI1GkFA-3Af_hUJi5C17oa8PxH0Xbk7hDL1QepoIle2bOcafTAdmhVZ4N558VVSQqG2r8jWXZf23GagmaSs_XNRfOEJ-HoxfAX-ldSu2rKU/s1600/good.jpg" /></a><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
<br /></div>
<h2 style="text-align: left;">
</h2>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small; font-weight: normal;">मिल कर साथ चलेंगे चाहे ..</span>धूप रहे या छाँह ... <br />प्यार से भी प्यारा होगा<br />छोटा सा वो गाँव .....<br /> पर ऐसा नहीं हो सका ..<br />कहीं माँ तो कहीं बहन का अहम आड़े आ<br />गया ....औरों की दखलअन्दाजी और खुद की<br />नासमझी की वजह से बसने से पहले ही घर उजाड़ गया .<br />पत्नी की आँखों में जहाँ पति के लिए हिकारत के भाव थे<br />वहीँ पति की आँखों में आँसू थे ..वो ..तड़प रहा था ...<br />प्लीज ...बस एक मौका दे ..दो ....तुम्हारी सारी<br />शिकायतें दूर कर दूँगा ....पर पत्नी अडिग थी ...<br />नहीं ..बस अब और नहीं ...बहुत देर हो गई .... ......<br />पता नहीं किसका दोष था ..समय ,परिस्थितियाँ या<br />आपसी समझ का .....काश दोनों ..खुद को पहचान<br />पाते ...उनकी प्राथमिकता क्या है . ये समझ .पाते ..<br />दुःख दोनों को हीं था ..पर किसका दुःख बड़ा था अभी तक नहीं समझ पाई . <br /><br />कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसका समाधान नहीं .....पर समाधान तक आते-आते<br />बनने के बजाय बात बिगड़ गई ......कारण चाहे जो भी हो ...धेर्य की कमी ,त्याग का अभाव ....या फिर कुछ और ....<br />पर इतना तो तय है की भौतिकता की आड़ में रिश्तों का व्यापार किया जा रहा है .....<br />जहाँ संबंधों का नहीं पैसों का महत्त्व बढ़ गया है .....</h2>
<h2 style="text-align: left;">
<br /></h2>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
</div>
Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-70599448635282998702013-04-03T06:47:00.002-07:002013-09-29T12:09:33.846-07:00कैसे जी लेते हैं लोग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiI5NZBO2lnPCTu7rQ7rKNI1ud_IOUXoyNj_dRdBdqmsIcCh1pVv0Hb6MN1rrHRELOZxpP_VB4qdWN9PR1t1MJkwmwoCoQiUlCMTWUzHzI66t1xEyQlKhmrFgYTbZK1iFe1CBgJ_BABpgY/s1600/sad+face.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiI5NZBO2lnPCTu7rQ7rKNI1ud_IOUXoyNj_dRdBdqmsIcCh1pVv0Hb6MN1rrHRELOZxpP_VB4qdWN9PR1t1MJkwmwoCoQiUlCMTWUzHzI66t1xEyQlKhmrFgYTbZK1iFe1CBgJ_BABpgY/s1600/sad+face.jpg" /></a>बड़े प्यार से माँ बहू लेकर आई बेटे के लिए .....<br />.पर बहू को सास की बंदिशे<br />पसंद नहीं आई .....पढ़ी लिखी बहू थी ...<br />अपना बुरा भला सोच सकती थी . इसलिए शादी की सालगिरह भी नहीं मना सकी मात्र बारह दिन पति के साथ रही और अपना फैसला सुना दिया ....</h2>
<h2 style="text-align: left;">
<br />कि,.... मैं अपने पति के साथ नहीं रह सकती .....<br />पति को मुक्त करने के एवज में अच्छी-खासी रकम<br />की मांग की ..पति गिडगिडाता रहा ..बस एक मौका दे दो ...</h2>
<h2 style="text-align: left;">
.<br />तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूंगा ..पर पत्नी नहीं मानी ...<br />शायद उसे पति की नहीं पैसे की जरुरत थी ..बंधन उसे बोझ<br />लगा ....वो उन्मुक्त होकर जीना चाहती थी .....</h2>
<h2 style="text-align: left;">
उसने रिश्तों के महत्व को नहीं समझा बल्कि रिश्तों की कीमत लगाईं ..अपने कुत्सित इरादों की आड़ में किसी के जीवन को दाँव पर लगाना ......कहाँ तक उचित है ?......गलती करनेवाले की आत्मा</h2>
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क्या उसे धिक्कारती नहीं ? रिश्ता टूटने की पीड़ा में पति की आँखों में आँसू थे,..... दूसरों को दुःख देकर,...कैसे जी लेते हैं लोग .?</h2>
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Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-67154021890910357732013-03-28T22:19:00.000-07:002013-03-28T09:22:32.941-07:00धुँध के उस पार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मतलब जीवन का नहीं है ...<br />रिश्तों का व्यापार<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhyphenhyphen0w7LlrrMMVGAAw3oBe6GRtJK9wHm1mEI9cbx9hpbgCUWuHp-jxlB4OagoTsW6KIuW4B6WC8dWSG7KlDB77ePnBbzhJPeufzCHwwNf-wiHhdDS8RIgPH9C8EOE1TzJOxy62g0Jtkpe4/s1600/Image011.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhyphenhyphen0w7LlrrMMVGAAw3oBe6GRtJK9wHm1mEI9cbx9hpbgCUWuHp-jxlB4OagoTsW6KIuW4B6WC8dWSG7KlDB77ePnBbzhJPeufzCHwwNf-wiHhdDS8RIgPH9C8EOE1TzJOxy62g0Jtkpe4/s320/Image011.jpg" width="320" /></a></div>
<br />क्या इसी को जीवन कहते हैं ?<br />जानने के लिए चलिए<br />धुँध के उस पार .......<br /> </h2>
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ब्लागर साथियों इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपकोजीवन के बहुरंगी अनुभवों से दो-चार करवाउंगी , आपके सहयोग की अपेक्षा है .....धन्यवाद ....</h2>
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Dr.NISHA MAHARANAhttp://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-9069381066772090076.post-30844242733202877172013-03-28T12:33:00.000-07:002013-03-28T12:38:35.354-07:00 वो लड़की <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कक्षा चतुर्थ में पढनेवाली छोटी सी लड़की नेहा विद्यालय आती ..<br />पूर्ण समर्पण के साथ अपना पाठ याद करती .शिक्षक जो भी पढ़ाते<br /> उसे ध्यानपूर्वक सुनती और जैसे हीं समय मिलता ....<br />.पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की की दिनचर्या को गौर से देखती .<br />वास्तव में उस लड़की में गजब की फूर्ति थी<br /><span style="font-family: arial; font-size: x-small;">.सामान्यत:माएँ काम </span><span style="font-family: arial; font-size: x-small;"> करते हुए नजर </span>आती थी पर यहाँ उसे अलग नज़ारा देखने को मिलता था .<br />माँ तो हमेशा सज-धज कर बैठी रहती ,बेटी काम करती रहती थी .<br /> चार छोटे भाइयों को नहलाना धुलाना ,बरतन माँजना .<br /> खाना बनाना .माँ की चोटी बनाना ,सबके कपडे धोना,<br />इतना सारा काम करते उसने किसी बीस वर्षीय<br /> लड़की को पहली बार देखा था .<br /> इसके बाबजूद उसका बड़ा भाई उसे डाँटते रहता कि<br />'अभी तक तुमने खाना नहीं बनाया "?<br />भाई के हाँ में हाँ मिलाते हुए उसके पापा<br />भी उसे डाँटते पर वो निर्लिप्त भाव से<br /> मशीनवत सारा काम करती रहती थी .<br /> पापा ,मम्मी .बड़े भाई और सभी छोटे<br />भाइयों को खाना खिलाने के बाद<br /> वो लड़की एक बार फिर घर एवम बर्तन साफ करती,...<br /> वाकई में उसके बर्तन एवम घर शीशे सा चमकता रहता था .<br /><br />.अंत में वो नहाती और फिर अकेली खाना<br />खाती .नेहा ने दुकड़ों-दुकड़ों में ये देखा था .<br />उसे बड़ा अजीब लगता था क्योंकि इसके पहले उसने ऐसा कहीं<br />देखा नहीं था .<br />उसकी माँ बड़े मनुहार से उसे खाना खिलाती थी पर यहाँ तो स्थिति<br />बिल्कुल उल्टी थी .खैर एक बार उसे मौका मिल हीं गया .छुट्टी हुई और<br />वो लड़की उसे रास्ते में मिल गई .<br /> बिना किसी भूमिका के नेहा पूछ बैठी ,"दीदी ..<br />आप इतना काम इतनी सफाई से कैसे कर लेती हैं ?<br />आपकी माँ कोई काम क्यों नहीं करतीं ?<br />आपका भाई बिना वजह आपको क्यों डांटता है ?<br />चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट लाते हुए वो लड़की बोली ,"मेरी माँ<br />अंधी है इसलिए कोई काम नहीं करती वस्तुत:वो तन से हीं<br />नहीं मन से भी अंधी है,. इसीलिए जिस उम्र में उसे<br />दादी या नानी बनना चाहिए माँ बन रही है ...<br />अपनी गिरहस्ती का सारा भार मेरे ऊपर डाल दिया है ..<br />भाई भी क्या करेगा माँ-बाप का गुस्सा मेरे ऊपर निकालता है .<br />बेटी और बहन होने के नाते मेरा जो फर्ज है उसे निभा रही हूँ" .<br />और कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई नेहा की ..उसे पहली बार पता चला था<br />कि" माँ-बाप ऐसे भी होते हैं " .उसे तो लगता था की माँ -बाप वो होते हैं जो अपनी<br />संतान से बेहद प्यार करते हैं,..... पर .ये कैसे माँ-बाप हैं ?.....जिन्हें<br />अपनी ख़ुशी के पीछे अपनीं संतान का दू ;ख नज़र नहीं आ रहा है .....<br />छोटी सी वो नेहा अब बहुत बड़ी हो गई है पर ....आज भी उसके सामने<br />ऐसे कई सवाल मुँह बाए खड़े हैं जिसका कोई जबाव नहीं है .....शायद यही जीवन है .....<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />'</h2>
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