रविवार, 7 अप्रैल 2013

बहुत देर हो गई ..




मिल कर साथ चलेंगे चाहे ..धूप रहे या छाँह ...                
प्यार से भी प्यारा होगा
छोटा सा वो गाँव .....
              पर ऐसा नहीं हो सका ..
कहीं माँ तो कहीं बहन का अहम आड़े आ
गया ....औरों की दखलअन्दाजी और खुद की
नासमझी की वजह से बसने से पहले ही घर उजाड़ गया .
पत्नी की आँखों में जहाँ पति के लिए हिकारत के भाव थे
वहीँ पति की आँखों में आँसू थे ..वो ..तड़प रहा था ...
प्लीज ...बस एक मौका दे ..दो ....तुम्हारी सारी
शिकायतें दूर कर दूँगा ....पर पत्नी अडिग थी ...
नहीं ..बस  अब और नहीं ...बहुत देर हो गई .... ......
पता नहीं किसका दोष था ..समय ,परिस्थितियाँ या
आपसी  समझ का .....काश दोनों ..खुद को पहचान
पाते ...उनकी प्राथमिकता क्या है .  ये समझ .पाते ..
दुःख दोनों को हीं था ..पर किसका दुःख बड़ा था अभी तक  नहीं समझ पाई   .

कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसका समाधान नहीं .....पर समाधान तक आते-आते
बनने के बजाय बात बिगड़ गई ......कारण चाहे जो भी हो ...धेर्य की कमी ,त्याग का अभाव ....या फिर कुछ और ....
पर इतना तो तय है की भौतिकता की आड़  में रिश्तों का व्यापार किया  जा रहा  है .....
जहाँ संबंधों का नहीं पैसों का महत्त्व बढ़ गया है .....



3 टिप्‍पणियां:

  1. गागर में सागर .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .आधुनिक जीवन की झर्बेरियाँ यही तो हैं .

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  2. bhautikta ne manaw jivn ki andha baha diya hai,riste vyapar ho gye hain ,bilkul sahi likha hai aap ne,पर इतना तो तय है की भौतिकता की आड़ में रिश्तों का व्यापार किया जा रहा है .....
    जहाँ संबंधों का नहीं पैसों का महत्त्व बढ़ गया है .....

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