बुधवार, 29 मई 2013

एक था राजा .

एक था राजा .....उसे दौलत की बहुत भूख थी ......
दौलत पाने के लिए उसने भगवान् की बड़ी तपस्या की ..आख़िरकार उसकी तपस्या रंग लाई ...उसके सामने भगवान् प्रकट हुए और ...कहा ....वत्स ..मांगों क्या माँगना चाहते हो ...?.
राजा ने कहा ..भगवन .....वरदान दीजिये कि मै जिसको छुं लूँ वो सोने का 
बन जाय ....भगवान् ने कहा .....ऐसा ही होगा ..राजा बड़ा खुश हुआ .....राजमहल में वापस 
आया ......बड़े दिनों बाद अपने भवन में आया था .....भूख लगी थी वो भी जोरदार ..उनके 
सामने छप्पन पकवान परोसा गया पर ...यह क्या ....?   उसके छूते हीं  भोजन सहित थाली सोने में 
परिवर्तित हो   चुकी थी  .....राजा परेशान ......अचानक राजकुमारी सामने आई ..पिता को 
सामने देख ख़ुशी से लिपट गई ..और पलक झपकते ही वो सोने में बदल गई .....राजा दुःख में डूब गया....राजा को दुखी देख रानी उसके समीप आई ..पर राजा को छूते ही वो भी सोने की 
बन गई .....खुशियों की चाहत में राजा दुःख के सागर में डूब गया ....जो उसके पास था वो भी छिन गया .....क्यों ? क्योंकि उसने सोच-समझ कर काम नहीं किया ...लालच के वशीभूत 
वरदान मांग लिया ....वास्तव में ये कहानी ... ..कल भी प्रासंगिक थी आज भी है और कल भी रहेगी ...खुशीपूर्वक जीने के लिए हमें क्या चाहिए ....पहले हमें ये निर्धारित करना चाहिए ....हमारी प्राथमिकता क्या है ..वो हमीं तय कर सकते हैं ...
जीवन मे दौलत के साथ-साथ रिश्तों की भी अहमियत है ....इसलिए दौलत के गुरुर में ..रिश्तों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए ...जो ऐसा करता है ,,,उसके हाथ पछतावे के सिवा कुछ नहीं आता है ...आपको पछताना नहीं पड़े इसलिए ...व्यक्ति .परिस्थिति और घटनाओं को पहचानना और उन में अंतर करना सीखें .....झूठ बोलने से पहले .शक करने से पहले और किसी का विश्वास तोड़ने से पहले अवशय सोचें ....  क्योंकि आप जो बोयेंगे वही काटना पड़ेगा ......          धन्यवाद .....

7 टिप्‍पणियां:

  1. स्वार्थ में जो अँधा होता है उसकी ऐसे ही गत होती है ..बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

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  2. बढ़िया बोध कथा निशा जी , बधाई !

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  3. अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  4. सर्व कालिक और प्रासंगिक है यह बोध कथा। ॐ शान्ति।

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  5. बहुत ज्ञानवर्धक, और शानदार रचना

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