रविवार, 20 अक्तूबर 2013

रिश्तों के रेगिस्तान में

रिश्तों के रेगिस्तान में 
यादों के फूल खिलते हैं 
कभी आँसू ,कभी मुस्कान 
कभी शूल बनकर चुभते हैं.……. 




                                              सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं.…. पर कैसा परिवर्तन  ? ये सिर्फ भुक्तभोगी ही समझ सकता है। मेरे पति बैंक में उच्च पद पर पदस्थ हैं पर ख्यालों से दकियानूसी। मेरे ससुर जी ने उन्हें सिखाया था कि औरतों पर हमेशा शक करो ,उसे पैसे न दो तो वो नियंत्रण में रहती है। मै भी नौकरी करती थी ( आज भी वो शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं ) घर के सारे खर्च मेरी कमाई से चलता था। मेरे पति को मेरे ऊपर हमेशा शक होता था। कहीं बाहर घुमाने ले जाते तो घर आकर इस बात पर लड़ते थे कि सारे पुरुष तुम्हें घूरते हैं। मै नौकरी छोड़ने तक के लिए तैयार रहती थी क्योंकि मुझे घर में रहना पसंद था। पर पति को पैसे भी  चाहिए था। विकृत मानसिकता वाले पुरुष थे वो। 
          (उच्च पदस्थ  तीन भाइयों की लाडली बहन हैं वो।  जो उनके जरुरत के समय हमेशा हाजिर हो जाते हैं।  बेटा भी इंजीनियर है अच्छी कम्पनी में)
                                                   घर को बचाने के लिए मैंने हर सम्भव कोशिश की पर एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे कहा.… माँ.…तुम  इस इंसान के साथ क्यों और किसलिए रह रही हो ? उस समय मेरा बेटा १० वीं  कक्षा में था। बेटे की बात सुन मेरा दिल पसीज गया क्योंकि वो इंसान हमदोनों माँ-बेटे को परेशान करता था। आख़िरकार मै पति का साथ छोड़ अलग रहने लगी।  मै अपने पति से बहुत प्यार करती थी कहते हुए उनकी आँखें   भर आईं। आप आज भी अपने पति से प्यार करती हैं ? मेरे प्रश्न पूछने पर स्वीकृति में उन्होंने सिर हिलाया। धन्य है नारी की ऐसी  सहनशीलता  और  समर्पण । बात का क्रम जारी रखते हुए उन्होंने बताया तीन साल पहले वो मेरे पास आये थे कि मुझे तलाक दे दो पर मै तलाक  देकर किसी अन्य औरत की जिन्दगी ख़राब नहीं कर सकती ,सच कितना बदनसीब होगा वो पति जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हो अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर सका। धिक्कार है ऐसे इंसान पर जो अपनी बुद्धि-विवेक से काम नहीं लेकर कठपुतली बन अपने जीवन में जहर घोल लेता है । 
                   पति से जुदाई की पीड़ा ,बीते दिनों की  कसक उसके चेहरे पर है लेकिन वो अपने बेटे के साथ खुश है। काश कि उसके पति ने अपनी पत्नी और बेटे को अहमियत दी होती……. 
                         पर समय रहते कहाँ समझ में आती है अच्छी बातें ?……. शायद यही जीवन है। 

             

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

..प्यार एक पवित्र भावना है

दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे .....उन्होंने  साथ जीने और मरने की कसम खाई थी पर .....उनका ये प्यार बड़ों को गवारा नहीं हुआ .....जाति बंधन आड़े आ गया ....समय से पहले  दो फूल मुरझा गए .....लड़की की शादी हो गई पर पहले प्यार को भूल न पाई . लड़का भी कहाँ भूल पाया ? दिल के हाथों मजबूर होकर लड़की के घर के पास आकर आवाज लगाता .छोटी बहन उसके प्यार की राजदार थी .बहन के आँसू कोई देख न ले इस बात का प्रयास करती . दोनों प्रेमियों ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया .उनका प्यार आज भी जिन्दा है एक दूसरे के दिलों में क्योंकि उनका प्यार जिस्मानी नहीं ...आत्मिक था .जिसका आधार त्याग था ....लूट-खसोट नहीं ....वर्तमान समय में प्यार करनेवाले की गन्दी हरकतें देख प्यार पर प्रश्न चिन्ह लगाने को जी चाहता है ....प्यार एक पवित्र भावना है जिसे समझना सबके वश की बात नहीं  .