सोमवार, 22 अप्रैल 2013

आज वो ...मुझे





 बचपन में उसने सिखाया था कि  गुडिया 
कैसे बनाते हैं ...उसकी आँखें ,नाक .कान 
और होंठों को  कैसे आकार दिया जाय ..
बिना किसी विरोध के मैं उसकी सारी  बातें मान लिया करती थी .

        कहने को तो  उम्र में वो मुझसे  छोटी थी ...पर.. बातें बड़ी-बड़ी किया करती थी ....मै चकित भाव से सोचती थी ...छोटी जगह में रहकर भी कितनी अच्छी-अच्छी बातें करती है ....मेरी 
प्यारी सी चंचल और हँसमुख सखी .....

उस समय गुड़ियों का ब्याह रचाकर ...  हमदोनों 
खुशियों के साथ आँख-मिचौनी करते थे ....

समय बदला वक्त ने करवट ली  ....
आज भी वो उसी तन्मयता के साथ जीवन 
पथ पर आगे बढ़ रही है .....फर्क सिर्फ इतना 
है की ....निर्जीव गुडिया के बदले ...
सजीव गुड्डे और गुडिया का जीवन सँवार 
रही है  ....
       .उसका जीवन साथी  बीच मंझधार में 
उसे छोड़ भगवान का प्यारा हो गया ....

उसके दुःख से दुखी हो उसकी माँ भी असमय  काल की 
ग्रास बन गई .....

उसकी सखी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई ....
                .वो आज भी   ख़ुशी-पूर्वक  
  अपने  बच्चों  का लालन-पालन कर रही है ...

न किसी से कोई शिकवा ..न शिकायत ...न हर्ष  न विषाद ...

बचपन में भी वो मेरे लिए अनुकरणीय थी और आज भी है ...

जहाँ लोग छोटे से दुःख से दुखी हो जीवन को  कष्टमय 
बना डालते हैं ...

      .वहीँ  मेरी बालपन की  सखी ..एक 
तपस्विनी की भांति अपने जीवन की नैया को अपने दो किशोर 
बेटे और एक छोटी सी बिटिया के सहारे  जीवन के भवसागर 
में खेये जा रही है ....शायद जीना ..इसी का नाम है ......


बचपन में उसने मुझे गुडिया बनाना ...सिखाया था ....

आज वो ...मुझे ..जीवन ..जीना सिखा रही है .....






रविवार, 7 अप्रैल 2013

बहुत देर हो गई ..




मिल कर साथ चलेंगे चाहे ..धूप रहे या छाँह ...                
प्यार से भी प्यारा होगा
छोटा सा वो गाँव .....
              पर ऐसा नहीं हो सका ..
कहीं माँ तो कहीं बहन का अहम आड़े आ
गया ....औरों की दखलअन्दाजी और खुद की
नासमझी की वजह से बसने से पहले ही घर उजाड़ गया .
पत्नी की आँखों में जहाँ पति के लिए हिकारत के भाव थे
वहीँ पति की आँखों में आँसू थे ..वो ..तड़प रहा था ...
प्लीज ...बस एक मौका दे ..दो ....तुम्हारी सारी
शिकायतें दूर कर दूँगा ....पर पत्नी अडिग थी ...
नहीं ..बस  अब और नहीं ...बहुत देर हो गई .... ......
पता नहीं किसका दोष था ..समय ,परिस्थितियाँ या
आपसी  समझ का .....काश दोनों ..खुद को पहचान
पाते ...उनकी प्राथमिकता क्या है .  ये समझ .पाते ..
दुःख दोनों को हीं था ..पर किसका दुःख बड़ा था अभी तक  नहीं समझ पाई   .

कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसका समाधान नहीं .....पर समाधान तक आते-आते
बनने के बजाय बात बिगड़ गई ......कारण चाहे जो भी हो ...धेर्य की कमी ,त्याग का अभाव ....या फिर कुछ और ....
पर इतना तो तय है की भौतिकता की आड़  में रिश्तों का व्यापार किया  जा रहा  है .....
जहाँ संबंधों का नहीं पैसों का महत्त्व बढ़ गया है .....



बुधवार, 3 अप्रैल 2013

कैसे जी लेते हैं लोग

बड़े प्यार से माँ बहू  लेकर आई बेटे के लिए .....
.पर बहू  को सास की बंदिशे
पसंद नहीं आई .....पढ़ी लिखी बहू  थी ...
अपना बुरा भला सोच सकती थी .  इसलिए शादी की  सालगिरह भी नहीं मना सकी मात्र बारह दिन पति के साथ रही और अपना फैसला सुना दिया ....


कि,.... मैं अपने पति के साथ नहीं रह सकती .....
पति को मुक्त करने के एवज में अच्छी-खासी रकम
की मांग की ..पति गिडगिडाता रहा ..बस एक मौका दे दो ...

.
तुम्हारी सारी  शिकायतें दूर कर दूंगा ..पर पत्नी नहीं मानी ...
शायद उसे पति की नहीं पैसे की जरुरत थी ..बंधन उसे बोझ
लगा ....वो उन्मुक्त होकर जीना चाहती थी .....

उसने रिश्तों के महत्व को नहीं समझा बल्कि रिश्तों की कीमत लगाईं ..अपने कुत्सित इरादों की आड़ में  किसी के जीवन को दाँव पर लगाना ......कहाँ तक उचित है ?......गलती करनेवाले की आत्मा

क्या उसे धिक्कारती नहीं ? रिश्ता टूटने  की पीड़ा में पति की आँखों में आँसू थे,.....  दूसरों को दुःख देकर,...कैसे जी लेते हैं लोग .?