कैसे बनाते हैं ...उसकी आँखें ,नाक .कान
और होंठों को कैसे आकार दिया जाय ..
बिना किसी विरोध के मैं उसकी सारी बातें मान लिया करती थी .
कहने को तो उम्र में वो मुझसे छोटी थी ...पर.. बातें बड़ी-बड़ी किया करती थी ....मै चकित भाव से सोचती थी ...छोटी जगह में रहकर भी कितनी अच्छी-अच्छी बातें करती है ....मेरी
प्यारी सी चंचल और हँसमुख सखी .....
उस समय गुड़ियों का ब्याह रचाकर ... हमदोनों
खुशियों के साथ आँख-मिचौनी करते थे ....
समय बदला वक्त ने करवट ली ....
आज भी वो उसी तन्मयता के साथ जीवन
पथ पर आगे बढ़ रही है .....फर्क सिर्फ इतना
है की ....निर्जीव गुडिया के बदले ...
सजीव गुड्डे और गुडिया का जीवन सँवार
रही है ....
.उसका जीवन साथी बीच मंझधार में
उसे छोड़ भगवान का प्यारा हो गया ....
उसके दुःख से दुखी हो उसकी माँ भी असमय काल की
ग्रास बन गई .....
उसकी सखी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई ....
उसकी सखी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई ....
.वो आज भी ख़ुशी-पूर्वक
अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही है ...
न किसी से कोई शिकवा ..न शिकायत ...न हर्ष न विषाद ...
बचपन में भी वो मेरे लिए अनुकरणीय थी और आज भी है ...
जहाँ लोग छोटे से दुःख से दुखी हो जीवन को कष्टमय
बना डालते हैं ...
.वहीँ मेरी बालपन की सखी ..एक
तपस्विनी की भांति अपने जीवन की नैया को अपने दो किशोर
बेटे और एक छोटी सी बिटिया के सहारे जीवन के भवसागर
में खेये जा रही है ....शायद जीना ..इसी का नाम है ......
बचपन में उसने मुझे गुडिया बनाना ...सिखाया था ....
आज वो ...मुझे ..जीवन ..जीना सिखा रही है .....