गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

अवध एक्सप्रेस का लेडीज़ कम्पार्टमेंट

तत्काल सफ़र करना कितना मुश्किल काम है ये एक भुक्तभोगी  ही समझ सकता है। मैंने अभी ऐसी ही कई यात्रायें की  है। अवध एक्सप्रेस के लेडीज़ कम्पार्टमेंट में ---जहाँ कि औरतें कम और सामान ज्यादा रहता है। गाडी के सबसे पीछे वाली बोगी -सुरक्षा कि कोई व्यवस्था नहीं -किसी को खड़े होने कि जगह नहीं मिलती तो कोई रास्ते में ही लेटी या बैठी रहती है। एक औरत के साथ चार सामान --कोई देखनेवाला नहीं ,मुम्बई जानेवाली और मुम्बई से आनेवाली निम्न वर्ग की  महिलाओं से भरा रहता है कम्पार्टमेंट। शामगढ़ से लखनऊ तक एक बार भी कोई गार्ड नहीं आया। सभी औरतें इतनी बुरी तरह से लड़ती हैं कि उसका वर्णन करना भी मुश्किल है। भगवान की  दया से मुझे सीट मिल जाती है  पर जो डरपोक किस्म कि औरतें होती है उसे रास्ता भी नहीं मिल पाता। कितना कठिन  है ऐसी यात्रा को अंजाम देना और इसका जिम्मेदार कौन है ?  कई सवाल ऐसे हैं जिनका कोई जवाब नहीं है। पर मैं ऐसे सफ़र का भी भरपूर आनंद लेती हूँ। क्योंकि सफ़र तो सफ़र है चाहे वो दूरियों का सफ़र हो या जिंदगी का----- उसे कैसे जीना है ये अपने हाथ में है। 

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

रिश्तों के रेगिस्तान में

रिश्तों के रेगिस्तान में 
यादों के फूल खिलते हैं 
कभी आँसू ,कभी मुस्कान 
कभी शूल बनकर चुभते हैं.……. 




                                              सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं.…. पर कैसा परिवर्तन  ? ये सिर्फ भुक्तभोगी ही समझ सकता है। मेरे पति बैंक में उच्च पद पर पदस्थ हैं पर ख्यालों से दकियानूसी। मेरे ससुर जी ने उन्हें सिखाया था कि औरतों पर हमेशा शक करो ,उसे पैसे न दो तो वो नियंत्रण में रहती है। मै भी नौकरी करती थी ( आज भी वो शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं ) घर के सारे खर्च मेरी कमाई से चलता था। मेरे पति को मेरे ऊपर हमेशा शक होता था। कहीं बाहर घुमाने ले जाते तो घर आकर इस बात पर लड़ते थे कि सारे पुरुष तुम्हें घूरते हैं। मै नौकरी छोड़ने तक के लिए तैयार रहती थी क्योंकि मुझे घर में रहना पसंद था। पर पति को पैसे भी  चाहिए था। विकृत मानसिकता वाले पुरुष थे वो। 
          (उच्च पदस्थ  तीन भाइयों की लाडली बहन हैं वो।  जो उनके जरुरत के समय हमेशा हाजिर हो जाते हैं।  बेटा भी इंजीनियर है अच्छी कम्पनी में)
                                                   घर को बचाने के लिए मैंने हर सम्भव कोशिश की पर एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे कहा.… माँ.…तुम  इस इंसान के साथ क्यों और किसलिए रह रही हो ? उस समय मेरा बेटा १० वीं  कक्षा में था। बेटे की बात सुन मेरा दिल पसीज गया क्योंकि वो इंसान हमदोनों माँ-बेटे को परेशान करता था। आख़िरकार मै पति का साथ छोड़ अलग रहने लगी।  मै अपने पति से बहुत प्यार करती थी कहते हुए उनकी आँखें   भर आईं। आप आज भी अपने पति से प्यार करती हैं ? मेरे प्रश्न पूछने पर स्वीकृति में उन्होंने सिर हिलाया। धन्य है नारी की ऐसी  सहनशीलता  और  समर्पण । बात का क्रम जारी रखते हुए उन्होंने बताया तीन साल पहले वो मेरे पास आये थे कि मुझे तलाक दे दो पर मै तलाक  देकर किसी अन्य औरत की जिन्दगी ख़राब नहीं कर सकती ,सच कितना बदनसीब होगा वो पति जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हो अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं कर सका। धिक्कार है ऐसे इंसान पर जो अपनी बुद्धि-विवेक से काम नहीं लेकर कठपुतली बन अपने जीवन में जहर घोल लेता है । 
                   पति से जुदाई की पीड़ा ,बीते दिनों की  कसक उसके चेहरे पर है लेकिन वो अपने बेटे के साथ खुश है। काश कि उसके पति ने अपनी पत्नी और बेटे को अहमियत दी होती……. 
                         पर समय रहते कहाँ समझ में आती है अच्छी बातें ?……. शायद यही जीवन है। 

             

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

..प्यार एक पवित्र भावना है

दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे .....उन्होंने  साथ जीने और मरने की कसम खाई थी पर .....उनका ये प्यार बड़ों को गवारा नहीं हुआ .....जाति बंधन आड़े आ गया ....समय से पहले  दो फूल मुरझा गए .....लड़की की शादी हो गई पर पहले प्यार को भूल न पाई . लड़का भी कहाँ भूल पाया ? दिल के हाथों मजबूर होकर लड़की के घर के पास आकर आवाज लगाता .छोटी बहन उसके प्यार की राजदार थी .बहन के आँसू कोई देख न ले इस बात का प्रयास करती . दोनों प्रेमियों ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया .उनका प्यार आज भी जिन्दा है एक दूसरे के दिलों में क्योंकि उनका प्यार जिस्मानी नहीं ...आत्मिक था .जिसका आधार त्याग था ....लूट-खसोट नहीं ....वर्तमान समय में प्यार करनेवाले की गन्दी हरकतें देख प्यार पर प्रश्न चिन्ह लगाने को जी चाहता है ....प्यार एक पवित्र भावना है जिसे समझना सबके वश की बात नहीं  .

बुधवार, 18 सितंबर 2013

बहन के लिए इतनी नफरत ?


                                                                                             छोटी बेटी से मिलने जा रही थी एक माँ। बड़ी बेटी के पास रहती थी क्योंकि                 
                                                                     विधवा थी,दो बेटियाँ हीं थी।
 बड़ी बेटी का पति इंजीनियर है और उसके दो बच्चे हैं --एक बेटा जो अभी   पढाई कर रहा है दिल्ली में और एक बेटी जो कोलकाता में नौकरी कर रही है। इसी साल मई में उसकी शादी हुई है। बड़ा दामाद बहुत पैसेवाला है क्योंकि चार जिले का निर्माण कार्य उसके अधीन रहता है। विधवा के पति की कैंसर से मौत हो गई। वो भी उच्च पदस्थ  व्यक्ति थे। पेंशनधारी थे। अपने जीते जी अपनी सम्पति का बँटवारा करके गए थे दोनों बेटियों के नाम। विधवा के पास अभी भी खेती के रूप में काफी संपत्ति है और पेंशन भी मिलता है। खेती का खर्च वो खुद करती है पर उपज बड़ी बेटी हीं लेती है क्योंकि छोटी बेटी घर ( बिहार-भागलपुर ) से दूर राजस्थान के चितोड़ में रहती है। बड़ी बेटी की बेटी की शादी हुई पर उस औरत की बेटी यानी दुल्हन की मौसी  उसमें शरीक नहीं हुई क्योंकि कुछ दिन पहले  वो एक बिटिया की माँ बनी थी। छोटा दामाद भी कृषि विभाग में उच्च पद पर है -बेटी भी पढ़ी लिखी है पर बच्चे छोटे होने की वजह से नौकरी नहीं कर पा रही है।

 नातिन की शादी की वजह से छोटी बेटी के पास नहीं जा पाई थी। चूँकि अब सारा काम निबट गया था। अतः वो अपनी नवजात नातिन से मिलने जा रही थी। साथ में बड़ी बेटी का भांजा था जो उसे रह-रह कर कुछ बातें समझा रहा था। महिला की उम्र यही कोई साठ साल के करीब होगी । मै १४.७ . १३ को भागलपुर -अजमेर से चंदेरिया आ रही थी ,वो महिला मेरी सहयात्री थी। धीरे-धीरे परिचय बढ़ा और दुकड़ों-दुकड़ों में उसने अपनी आप बीती सुनाई । साथ में जो लड़का था वो आक्रोशित होकर बता रहा था -मेरी मामी बहुत ख़राब है, वो बहुत लोभी है अपनी माँ से अच्छा व्यवहार  नहीं करती ,अपनी बहन को तो देखना हीं नहीं चाहती। सगी बहन को अपनी बेटी की शादी में नहीं बुलाया। मैंने जब उस महिला से पूछा तो उनका जवाब मिला कि छोटी बेटी को उसी समय डिलीवरी हुई थी इसीलिए वो नहीं आ पाई पर उनकी आँखों में दुःख और लाचारी साफ झलक रही थी। 


                                                    वास्तविकता ये थी कि बड़ी बेटी ने चाल  चलकर अपनी बेटी की शादी का समय ही वही लिया और शादी के नाम पर अपनी माँ को छोटी बहन के पास नहीं जाने दिया। साथ वाला लड़का उनकी हर बात का जवाब दे रहा था। उनको समझा रहा था --मेरी मामी के पास साल भर मत रहिये। ६ महीने छोटी के पास और ६ महीने बड़ी के पास रहिये। वो आप से नहीं आपके पैसों से प्यार करते हैं। मुझे सुनाते हुए कहा -आंटी ! मामी ने नानी को आम भी नहीं खरीदने दिया जबकि अभी कुछ दिन पहले अपनी बेटी को आम देकर आई है कोलकत्ता से। नानी ने आम खरीदने केलिए कहा तो उन्होंने कहा कि गर्मी बहुत है --आम  ख़राब हो जाएगा। …आप बताइए  ए.सी. में एक दिन में आम कैसे ख़राब होगा जबकि मौसी ने कई बार फोन करके नानी को आम लेने  के लिए कहा था पर मामी ने साफ मना कर दिया। मेरे पूछने पर उस महिला ने बताया की मेरी बड़ी बेटी और छोटी बेटी में १८ साल का अंतर है। बड़ी बेटी ने छोटी को आज तक दिल से नहीं अपनाया। मरने से पहले मेरे पति ने कहा था बड़ी बेटी की हर बात मानना। बहुत ही सरल ह्रदय की महिला थी वो मैंने उन्हें कहा की आपके पति ने उसकी गलत बात मानने के लिए थोड़े कहा था अगर आप हिम्मत करके आम खरीद लेतीं तो वो कुछ नहीं कर पातीं ,ऐसे तो आप उसे बढ़ावा दे रही हैं।

 आपको बड़ी बेटी के ऐसे व्यवहार का विरोध करना चाहिए। इतने में उनकी छोटी बेटी का फोन आ गया। वो मम्मी से पूछ रही थी --कि मम्मी आपके  पास ज्यादा सामान तो नहीं है। नहीं बेटा --सिर्फ एक बैग है जिसमें मेरा सामान है। फोन रखने के बाद उनकी उदासी देख मुझे बड़ा दुःख हो रहा था --मेरे पास ५० आम थे जो  मेरे पति और बेटे के लिए लेकर आ रही थी। बेटी साथ थी। हम दोनों माँ-बेटी ने आम खा हीं लिया था। वस्तुतः बिहार का मालदह ( लंगड़ा आम )आम खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है।    मुझे भी मेरी बेटी और पतिदेव के दोस्त मना कर रहे थे पर मेरे पास दो घंटे थे उस समय का उपयोग कर भागलपुर से ही मैं आम खरीद कर उसे पैक करा कर ले आई थी। माँ हूँ ---माँ का दुःख समझ में आ रहा था। साथ में मेरी बिटिया भी थी। हमने आपस में बात किया और ---अपनी सहयात्री से कहा कि आंटी मेरे पास आम है आप दुखी मत होइये अपनी बेटी के लिए कुछ आम ले जाइये। वो कुछ बोलती उनके पहले ही उनके साथ वाला लड़का घबरा कर बोल उठा नहीं मेरी मामी को पता चलेगा तो वो मेरी नानी के साथ मेरी हालत भी ख़राब कर देंगी। मैंने कहा --उन्हें कैसे पता चलेगा ? तो उसने बताया की मौसी  एक सात साल का बेटा भी है वो बता देगा। वो औरत कभी मुझे देख रही थी तो कभी साथ वाले लड़के को। अंत में दुखी होकर बोली मेरे दामाद होते तो वो जरुर भेजते  चूरा और आम मेरी बेटी के लिए। मेरी बेटी मेरा  दर्द नहीं समझती पर मेरे दामाद को सब कुछ समझ में आता है। मुझे मालूम है मेरी छोटी बेटी मेरे सामान के बारे में इसीलिए पूछ रही थी 
वो सिर्फ यही पता लगाना चाह रही थी कि मै आम ला  रही हूँ या नहीं। मेरे  नाती ने भी कई बार मुझसे कहा था की नानी आम जरुर लाना। साथ वाला लड़का उन्हें बार-बार समझा रहा था---कि मामी से डरा मत करो आपके पास अपना पैसा है ,उसे अपने हिसाब से खर्च कर सकती हैं आप। मैंने फिर उनसे आग्रह किया आप संकोच मत कीजिये। आम ले लीजिये मुझसे पर आख़िरकार में डर  की जीत हुई आम तो नहीं लिया उन्होंने लेकिन मुझसे वादा किया की आगे से बेटी के इस तरह के व्यवहार का विरोध करेगी। 
                                                                                         
                                                                             कहते हैं कि बेटी माँ के दिल का दर्द समझती है पर कैसी बेटी थी वो जो माँ का दर्द समझने के बजाय उनके दर्द को बढ़ा रही थी। अपनी बेटी को खुद जाकर आम पहुँचा आई और बहन के लिए इतनी नफरत ? छोटे बच्चे हो तो उसका व्यवहार क्षम्य है पर इस उम्र में ऐसा अपरिपक्व व्यवहार ?  माँ  और बहन को दुखी कर क्या वो खुश रह पाएगी ? शायद नहीं-- कभी न कभी किसी न किसी रूप में उसे इसकी भरपाई अवश्य करनी पड़ेगी। पर ईर्ष्या और नफरत की आग में इंसान सब कुछ भूल जाता है। जब तक बात समझ में आये  तब तक बहुत देर हो जाती है.  शायद यही जीवन है। 

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

भाई की बात और डांट दोनों में दम था



माँ -जाई के प्यार से        पति के संग --पीहर के रंग 
भरी रहे कलाई 
लिए साथ में 
सतरंगी यादें 
खुशियों की घड़ी 
       आई.








सन १९८४ की बात है। उस समय मैं बारहवीं (I.Sc.) कर रही थी। मैं और मेरा भाई एक कक्षा में हीं थे उसका विषय गणित था और मेरा जीवविज्ञान । हम दोनों को दोनों के सहपाठी के बारे में सारी बातों की जानकारी रहती थी। मेरे साथ मेरी एक सहपाठी थी जिसका नाम था -गौरी। पढने में औसत थी।  उसकी हरकतें बड़ी विचित्र हुआ करती थी। सारे लड़कों में लोकप्रिय  होने के साथ हीं महाविद्यालय के स्टाफ की भी मुँहलगी थी। हालाँकि पढाई के मामले में वो हमेशा मुझसे मदद लेती थी और मेरे उसके सम्बन्ध भी अच्छे थे पर एक बात मुझे बड़ी अखरती थी कि प्रायोगिक कार्य करते समय जो डिमांसट्रेटर हमें प्रयोग सम्बन्धी कुछ बातें समझाने आते थे वो अधिकतम समय  गौरी के आसपास हीं मंडराते रहते थे।  बार-बार पूछने के बावजूद वो मुझे नज़रअंदाज  कर देते थे। गौरी को वास्तविकता का ज्ञान था पर वो भी मजे लेती थी। नम्बर के चक्कर में कोई विद्यार्थी उनसे पंगा नहीं लेता था। इसके पहले मैंने ऐसा कभी देखा नहीं था।    मुझे बहुत दुःख  होता था। मैंने बहुत कोशिश कर ली ,बहुत तैयारी भी करके जाती थी ताकि उस  डिमांसट्रेटर को मुझे डाँटने  का मौका न मिले और मुझे भी समझा  दे क्योंकि स्कूल में ऐसा माहौल नहीं देखा था मैंने।  वस्तुतः होता ये था कि प्रयोग सम्बन्धी सारी बातों की जानकारी डिमांसट्रेटर हीं देते थे। अंत में सर आते थे। सप्ताह में एक दिन रसायन का प्रयोग होता था और मुझे बड़ा ख़राब लगता था ,एक दिन की बात हो तो चल जाए पर हमेशा यही होता था। दूसरी लड़कियों  अन्य लड़कों की सहायता ले लेती या फिर गिडगिडाती उस डिमांसट्रेटर के सामने।  काम तो मेरा भी हो जाता था पर डिमांसट्रेटर का ये पक्षपात मुझसे सहन नहीं होता था। जब सहनशीलता की सीमा जवाब देने लगी तो मैंने अपने भाई दिलीप कुमार जो कि आज एयर -पोर्ट बोधगया में इंजीनियर है से अपनी परेशानी बताई।  वैसे तो  वो मेरा छोटा भाई है  पर उसका व्यवहार बड़े भाई जैसा था।  वो जो भी कहता था वो मेरे लिए पत्थर की लकीर हुआ करती थी ना की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। हम-दोनों बिना किसी दुराव-छिपाव के अपनी परेशानियाँ साझा करते थे और उसका समाधान भी निकालते  थे। इसलिए जब उस  परिस्थिति में मुझे दुःख होने लगा तो मैंने उसे बताया की  डिमांसट्रेटर गौरी को तो बड़े प्यार से बताते हैं पर मुझे नज़र-अंदाज करते हैं।  बात पूरी होने के पहले हीं मेरे भाई ने मुझे  जबरदस्त  डांट लगाई जिसे मैं आजतक नहीं भूल  पाई हूँ वो शायद भूल गया होगा पर उसकी वो सीख मुझे आज  भी राह दिखाती है। उसने डांटते हुए मुझसे कहा था--ऐसी लड़की से अपनी तुलना करती है ? तुम्हे पता है वो कैसी लड़की है ? सच मैं बता नहीं सकती पर दिल के जिस भाग में मुझे दुःख सा महसूस होता था भाई की  डांट से वहां खट से चोट लगी और मेरा दुःख तुरंत छू -मंतर हो गया। ऐसा नहीं है की किसी की बुराई से मेरे अहम को तुष्टि मिलती है पर भाई की बात और डांट दोनों में दम था। उसकी बातों में सच्चाई थी।



                 पीहर  की पुरवाई -भाभी  और भाई

 आज भी कई बार मुझे ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है किन्तु  अब दुःख नहीं होता बल्कि ऐसी औरतों पर दया आती है जो लटके-झटके दिखा कर अपना काम निकाल  लेती है और ईमानदार तथा कर्तव्यनिष्ठ औरतों को परेशान  करती है। कई बार पुरुष सहकर्मी मजाक में बोलते हैं की औरतें रो- धो कर अपना काम करवा लेती है पर मैं तुरंत प्रतिरोध व्यक्त  करती हूँ। पर सच्चाई तो यही है की कई जगह ऐसी औरतें और लडकियाँ मिल जाती हैं, जो अपनी मजबूरियों, अपने पति या घरवालों की बुराई कर अपने लिए सहानुभूति अर्जित कर अपना उल्लू सीधा कर लेती है भले हीं किसी अन्य का नुकसान  क्यों न हो। पर उन्हें  पता होना चाहिए   की शार्ट -कट का रास्ता कई बार इतना खतरनाक होता है की उसकी  जिन्दगी भर  भरपाई नहीं हो पाती है। अपने आसपास ऐसी कई घटनाएँ दिख जाती है पर किशोर -दिमाग पर छाई भाई के उस सीख से मुझे आज भी संबल मिलता है। सच्ची बात तो यही है की हमें किसी से तुलना करके दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि हर इन्सान का अपना-अपना स्तर होता है जो अतुलनीय होता है और ये बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि  तुलना हमेशा दुःख हीं देता है। मुझे मेरे भाई पर गर्व है। 


                मेरी आँखें के दो तारे -भतीजा -उमंग ,भतीजी -ख़ुशी 




बोधगया (मुक्ति का धाम ) में पूर्वजों की यादों में लीन निगाहें -कहाँ तुम चले गए ?

बुधवार, 29 मई 2013

एक था राजा .

एक था राजा .....उसे दौलत की बहुत भूख थी ......
दौलत पाने के लिए उसने भगवान् की बड़ी तपस्या की ..आख़िरकार उसकी तपस्या रंग लाई ...उसके सामने भगवान् प्रकट हुए और ...कहा ....वत्स ..मांगों क्या माँगना चाहते हो ...?.
राजा ने कहा ..भगवन .....वरदान दीजिये कि मै जिसको छुं लूँ वो सोने का 
बन जाय ....भगवान् ने कहा .....ऐसा ही होगा ..राजा बड़ा खुश हुआ .....राजमहल में वापस 
आया ......बड़े दिनों बाद अपने भवन में आया था .....भूख लगी थी वो भी जोरदार ..उनके 
सामने छप्पन पकवान परोसा गया पर ...यह क्या ....?   उसके छूते हीं  भोजन सहित थाली सोने में 
परिवर्तित हो   चुकी थी  .....राजा परेशान ......अचानक राजकुमारी सामने आई ..पिता को 
सामने देख ख़ुशी से लिपट गई ..और पलक झपकते ही वो सोने में बदल गई .....राजा दुःख में डूब गया....राजा को दुखी देख रानी उसके समीप आई ..पर राजा को छूते ही वो भी सोने की 
बन गई .....खुशियों की चाहत में राजा दुःख के सागर में डूब गया ....जो उसके पास था वो भी छिन गया .....क्यों ? क्योंकि उसने सोच-समझ कर काम नहीं किया ...लालच के वशीभूत 
वरदान मांग लिया ....वास्तव में ये कहानी ... ..कल भी प्रासंगिक थी आज भी है और कल भी रहेगी ...खुशीपूर्वक जीने के लिए हमें क्या चाहिए ....पहले हमें ये निर्धारित करना चाहिए ....हमारी प्राथमिकता क्या है ..वो हमीं तय कर सकते हैं ...
जीवन मे दौलत के साथ-साथ रिश्तों की भी अहमियत है ....इसलिए दौलत के गुरुर में ..रिश्तों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए ...जो ऐसा करता है ,,,उसके हाथ पछतावे के सिवा कुछ नहीं आता है ...आपको पछताना नहीं पड़े इसलिए ...व्यक्ति .परिस्थिति और घटनाओं को पहचानना और उन में अंतर करना सीखें .....झूठ बोलने से पहले .शक करने से पहले और किसी का विश्वास तोड़ने से पहले अवशय सोचें ....  क्योंकि आप जो बोयेंगे वही काटना पड़ेगा ......          धन्यवाद .....

रविवार, 19 मई 2013

पता नहीं था


बहुत छोटा था जब माँ की मौत हो गई थी .बिना वजह भी 
माँ की डांट और पिता से प्रताड़ना मिलती थी ...
बहुत कोशिश करता था की कोई गलती न करूँ पर ऐसा कभी हो नहीं पाता  था.....नाते रिश्तेदारों को कहते सुना थी की माँ सौतेली हो तो पिता भी सौतेला हो जाता है .....जब से आँख खोली थी उसी माँ को देखा था ...
पता नहीं था मुझे की माँ कैसी होती है और माँ का प्यार कैसा होता है ?
पढने की बहुत इच्छा होती थी पर माँ हमेशा कोई न कोई काम बता देती थी .....दिन में बकरी  चराने जाता था तो किताबें साथ ले जाता था .....वहीँ पढता था .....कई बार पढने के क्रम में ध्यान नहीं रख पाता  था और  किसी के खेत बकरी चली जाती थी  परिणामस्वरुप माँ और पिता दोनों 
के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता ....बहुत मुसीबतें आई पर पढना नहीं 
छोड़ा ....मैट्रिक  बोर्ड की परीक्षा देनी थी ....सोचा १ महीने गणित की कोचिंग ले लूं पर पिताजी ने मना कर दिया ..पर कभी हार नहीं मानी ....मेहनत मजदूरी  कर पढ़ाई जारी रखी  ....अपने जीवन का संस्मरण सुनाते 
वक्त रामप्रसाद जी की आँखें भर आई ....आज वो सरकारी नौकरी में अच्छे 
पोस्ट पर हैं .....हर साल गर्मी की छुट्टियों में गाँव आना नहीं भूलते ....
अपने सौतेले भाई-बहन से सम्बन्ध बनाये हुए हैं .....माँ-बाप तो नहीं रहे ..
पर अपने जमीं से जुड़े हुए हैं ......उनका कहना है कि जमीं से जुड़े रहे तो आसमान अपना होता है ....
                                   
                              बीते दिनों की यादें उन्हें दुखी नहीं करती ....उनका कहना है की अगर उन्हें सारी  सुविधाएँ मिल जाती तो शायद वो वहां तक 
नहीं पहुँच पाते जहाँ आज हैं ...
                         वास्तव में ऐसे लोग प्रेरणा के स्त्रोत होते हैं ..सम्मानीय 
और पूजनीय होते हैं .....जीवन का आदर्श प्रस्तुत कर औरों को भी जीवन 
जीने के लिए प्रेरित करते हैं .......

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

आज वो ...मुझे





 बचपन में उसने सिखाया था कि  गुडिया 
कैसे बनाते हैं ...उसकी आँखें ,नाक .कान 
और होंठों को  कैसे आकार दिया जाय ..
बिना किसी विरोध के मैं उसकी सारी  बातें मान लिया करती थी .

        कहने को तो  उम्र में वो मुझसे  छोटी थी ...पर.. बातें बड़ी-बड़ी किया करती थी ....मै चकित भाव से सोचती थी ...छोटी जगह में रहकर भी कितनी अच्छी-अच्छी बातें करती है ....मेरी 
प्यारी सी चंचल और हँसमुख सखी .....

उस समय गुड़ियों का ब्याह रचाकर ...  हमदोनों 
खुशियों के साथ आँख-मिचौनी करते थे ....

समय बदला वक्त ने करवट ली  ....
आज भी वो उसी तन्मयता के साथ जीवन 
पथ पर आगे बढ़ रही है .....फर्क सिर्फ इतना 
है की ....निर्जीव गुडिया के बदले ...
सजीव गुड्डे और गुडिया का जीवन सँवार 
रही है  ....
       .उसका जीवन साथी  बीच मंझधार में 
उसे छोड़ भगवान का प्यारा हो गया ....

उसके दुःख से दुखी हो उसकी माँ भी असमय  काल की 
ग्रास बन गई .....

उसकी सखी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई ....
                .वो आज भी   ख़ुशी-पूर्वक  
  अपने  बच्चों  का लालन-पालन कर रही है ...

न किसी से कोई शिकवा ..न शिकायत ...न हर्ष  न विषाद ...

बचपन में भी वो मेरे लिए अनुकरणीय थी और आज भी है ...

जहाँ लोग छोटे से दुःख से दुखी हो जीवन को  कष्टमय 
बना डालते हैं ...

      .वहीँ  मेरी बालपन की  सखी ..एक 
तपस्विनी की भांति अपने जीवन की नैया को अपने दो किशोर 
बेटे और एक छोटी सी बिटिया के सहारे  जीवन के भवसागर 
में खेये जा रही है ....शायद जीना ..इसी का नाम है ......


बचपन में उसने मुझे गुडिया बनाना ...सिखाया था ....

आज वो ...मुझे ..जीवन ..जीना सिखा रही है .....






रविवार, 7 अप्रैल 2013

बहुत देर हो गई ..




मिल कर साथ चलेंगे चाहे ..धूप रहे या छाँह ...                
प्यार से भी प्यारा होगा
छोटा सा वो गाँव .....
              पर ऐसा नहीं हो सका ..
कहीं माँ तो कहीं बहन का अहम आड़े आ
गया ....औरों की दखलअन्दाजी और खुद की
नासमझी की वजह से बसने से पहले ही घर उजाड़ गया .
पत्नी की आँखों में जहाँ पति के लिए हिकारत के भाव थे
वहीँ पति की आँखों में आँसू थे ..वो ..तड़प रहा था ...
प्लीज ...बस एक मौका दे ..दो ....तुम्हारी सारी
शिकायतें दूर कर दूँगा ....पर पत्नी अडिग थी ...
नहीं ..बस  अब और नहीं ...बहुत देर हो गई .... ......
पता नहीं किसका दोष था ..समय ,परिस्थितियाँ या
आपसी  समझ का .....काश दोनों ..खुद को पहचान
पाते ...उनकी प्राथमिकता क्या है .  ये समझ .पाते ..
दुःख दोनों को हीं था ..पर किसका दुःख बड़ा था अभी तक  नहीं समझ पाई   .

कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसका समाधान नहीं .....पर समाधान तक आते-आते
बनने के बजाय बात बिगड़ गई ......कारण चाहे जो भी हो ...धेर्य की कमी ,त्याग का अभाव ....या फिर कुछ और ....
पर इतना तो तय है की भौतिकता की आड़  में रिश्तों का व्यापार किया  जा रहा  है .....
जहाँ संबंधों का नहीं पैसों का महत्त्व बढ़ गया है .....



बुधवार, 3 अप्रैल 2013

कैसे जी लेते हैं लोग

बड़े प्यार से माँ बहू  लेकर आई बेटे के लिए .....
.पर बहू  को सास की बंदिशे
पसंद नहीं आई .....पढ़ी लिखी बहू  थी ...
अपना बुरा भला सोच सकती थी .  इसलिए शादी की  सालगिरह भी नहीं मना सकी मात्र बारह दिन पति के साथ रही और अपना फैसला सुना दिया ....


कि,.... मैं अपने पति के साथ नहीं रह सकती .....
पति को मुक्त करने के एवज में अच्छी-खासी रकम
की मांग की ..पति गिडगिडाता रहा ..बस एक मौका दे दो ...

.
तुम्हारी सारी  शिकायतें दूर कर दूंगा ..पर पत्नी नहीं मानी ...
शायद उसे पति की नहीं पैसे की जरुरत थी ..बंधन उसे बोझ
लगा ....वो उन्मुक्त होकर जीना चाहती थी .....

उसने रिश्तों के महत्व को नहीं समझा बल्कि रिश्तों की कीमत लगाईं ..अपने कुत्सित इरादों की आड़ में  किसी के जीवन को दाँव पर लगाना ......कहाँ तक उचित है ?......गलती करनेवाले की आत्मा

क्या उसे धिक्कारती नहीं ? रिश्ता टूटने  की पीड़ा में पति की आँखों में आँसू थे,.....  दूसरों को दुःख देकर,...कैसे जी लेते हैं लोग .?

गुरुवार, 28 मार्च 2013

धुँध के उस पार

मतलब जीवन का  नहीं है ...
रिश्तों का व्यापार

क्या इसी को जीवन  कहते हैं ?
जानने के लिए चलिए
धुँध के उस पार .......
 

ब्लागर साथियों इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपकोजीवन के बहुरंगी अनुभवों  से दो-चार करवाउंगी , आपके सहयोग की अपेक्षा है .....धन्यवाद ....

वो लड़की


कक्षा चतुर्थ में पढनेवाली छोटी सी लड़की नेहा  विद्यालय आती ..
पूर्ण समर्पण के साथ अपना पाठ याद करती .शिक्षक जो भी पढ़ाते
 उसे ध्यानपूर्वक सुनती और जैसे हीं समय मिलता ....
.पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की की दिनचर्या को गौर से देखती .
वास्तव में उस लड़की में गजब की फूर्ति थी
.सामान्यत:माएँ काम  करते हुए नजर आती थी पर यहाँ उसे अलग नज़ारा देखने को मिलता था .
माँ तो हमेशा सज-धज कर बैठी रहती ,बेटी काम करती रहती थी .
 चार छोटे भाइयों को नहलाना धुलाना ,बरतन माँजना .
 खाना बनाना .माँ की चोटी बनाना ,सबके कपडे धोना,
इतना सारा काम करते उसने किसी बीस वर्षीय
 लड़की को पहली बार देखा था .
 इसके बाबजूद उसका बड़ा भाई उसे डाँटते रहता कि
'अभी तक तुमने खाना नहीं बनाया "?
भाई के हाँ में हाँ मिलाते हुए उसके पापा
भी उसे डाँटते  पर वो निर्लिप्त भाव से
  मशीनवत सारा काम करती  रहती थी .
  पापा ,मम्मी .बड़े भाई और सभी छोटे
भाइयों को खाना खिलाने के बाद
 वो लड़की एक बार फिर घर एवम बर्तन साफ  करती,...
 वाकई में  उसके बर्तन एवम  घर शीशे सा चमकता रहता था .

.अंत में वो नहाती और फिर अकेली   खाना
खाती .नेहा ने   दुकड़ों-दुकड़ों में ये देखा था .
उसे बड़ा अजीब लगता था क्योंकि इसके पहले उसने ऐसा कहीं
देखा नहीं था .
उसकी माँ बड़े मनुहार से उसे खाना खिलाती थी पर यहाँ तो स्थिति
बिल्कुल उल्टी  थी .खैर एक बार उसे मौका मिल हीं गया .छुट्टी हुई और
वो लड़की उसे रास्ते में मिल गई .
 बिना किसी भूमिका के नेहा  पूछ बैठी ,"दीदी ..
आप इतना काम इतनी सफाई से कैसे कर लेती हैं ?
आपकी माँ कोई काम क्यों नहीं करतीं ?
आपका भाई बिना वजह आपको क्यों डांटता है ?
चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट लाते हुए वो लड़की बोली ,"मेरी माँ
अंधी है इसलिए कोई काम नहीं करती वस्तुत:वो तन से हीं
नहीं मन से भी अंधी है,. इसीलिए जिस उम्र में उसे
दादी या नानी बनना चाहिए  माँ बन रही है ...
अपनी  गिरहस्ती का सारा भार मेरे ऊपर डाल दिया है ..
भाई भी क्या करेगा माँ-बाप का गुस्सा मेरे ऊपर निकालता है .
बेटी और बहन  होने के नाते मेरा जो फर्ज है उसे निभा रही हूँ" .
और कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई नेहा की ..उसे पहली बार पता चला था
कि" माँ-बाप  ऐसे  भी होते हैं " .उसे तो लगता था की माँ -बाप वो होते हैं जो अपनी
संतान से बेहद प्यार करते हैं,..... पर .ये कैसे माँ-बाप हैं ?.....जिन्हें
अपनी ख़ुशी के पीछे अपनीं संतान का दू ;ख नज़र नहीं आ रहा है .....
छोटी सी वो नेहा अब  बहुत बड़ी हो गई है पर ....आज भी उसके सामने
ऐसे कई सवाल मुँह बाए खड़े हैं  जिसका कोई जबाव नहीं है .....शायद यही जीवन है .....






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