बहुत याद आती हो रजनी
2002 -2003 का सत्र था जब मैंने शिक्षा -संस्थान (SOE भँवर कुआँ) से M.Ed.किया था। वहीं मिली थी रजनी। दुबली-पतली प्यारी सी बैचमैट के रूप में। मेरे लिए उस तपते रेगिस्तान में हरियाली सी थी रजनी।
जहाँ कक्षा के अन्य स्थानीय सहपाठी अपने आप को खास समझते थे वहीं रजनी स्थानीय होने के बावजूद बड़े प्यार से बात करती थी। उम्र में छोटी होने की वजह से वो मुझे दीदी कहा करती थी। मुझे सचमुच में वो अपनी छोटी बहन सी लगती थी। कभी-कभार शाम को रजनी अपने घर ले जाती थी। वहीं से उसके साथ दूसरे दिन हम
डिपार्टमेन्ट आ जाया करते थे।कभी मैंने ये जानने की कोशिश नहीं कि , की रजनी का घर किस जगह है।जहाँ वो ले जाती वहीं चली जाती।हाँ उसके मुँह से परदेशीपूरा का नाम अवश्य सुनती थी।वस्तुतः वो क्रिश्चन कॉलोनी
में रहती थी।पढ़ाई पूरा होते हीं हम जुदा हो गए।उसके बाद हम कभी नहीं मिले।पता नहीं क्या हुआ,उसको।किसी से पता चला कि उसको कोई गंभीर बीमारी हो गई थी । आज भी मुझे रजनी की बड़ी याद आती है।पता नहीं वो कहाँ है।जिन रस्तों से उसके साथ गुजरती थी ,उन रस्तों से आज जब-जब गुजरती हूँ,उसकी याद आती है। सच में--- कुछ लोग नज़र से दूर हो या दूरियों एवं समय से परे हों किन्तु फिर भी याद आते हैं॥ शायद यही जिंदगी है।